चमार जाति का इतिहास अत्यंत प्राचीन, समृद्ध और गौरवशाली रहा है। इतिहासकारों और विद्वानों के अनुसार, इस समुदाय का संबंध भारत की प्राचीन क्षत्रिय परंपराओं और गौरवपूर्ण अतीत से है।
यहाँ चमार जाति के इतिहास के मुख्य पहलू दिए गए हैं:
1. प्राचीन क्षत्रिय मूल (Historical Roots)
विद्वानों और इतिहासकारों (जैसे डॉ. एन.वी. लेले और कर्नल टॉड) का मानना है कि ‘चमार’ शब्द मूल रूप से ‘चर्मकार’ से आया है। मध्यकाल के दौरान, कई क्षत्रिय वंशों ने विदेशी आक्रमणकारियों के सामने झुकने के बजाय कठिन श्रम और चमड़े का कार्य करना स्वीकार किया ताकि वे अपना धर्म और स्वाभिमान बचा सकें।
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चम्मर वंश: कई ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, चमार जाति का संबंध सूर्यवंशी क्षत्रियों के चम्मर वंश से जोड़ा जाता है।
2. धार्मिक और आध्यात्मिक योगदान
इस समुदाय ने भारत को महान संत और समाज सुधारक दिए हैं, जिन्होंने समाज को समानता और भक्ति का मार्ग दिखाया:
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संत शिरोमणि गुरु रविदास जी: वे चमार जाति के सबसे महान गौरव हैं। उन्होंने “बेगमपुरा” (ऐसा शहर जहाँ कोई दुख न हो) की परिकल्पना दी और ऊंच-नीच के भेदभाव को चुनौती दी। चित्तौड़ की रानी झाली और कई राजपूत राजा उनके शिष्य थे।
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सतनामी आंदोलन: छत्तीसगढ़ में बाबा घासीदास ने सतनाम पंथ के जरिए इस समुदाय को संगठित किया और स्वाभिमान से जीना सिखाया।
3. सैन्य योगदान और वीरता
चमार जाति का सैन्य इतिहास बहुत बहादुरी भरा रहा है:
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चमार रेजिमेंट: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में ‘चमार रेजिमेंट’ का गठन किया गया था (1943-1946)। इस रेजिमेंट ने कोहिमा के युद्ध में जापानियों के खिलाफ अदम्य साहस दिखाया और कई वीरता पुरस्कार जीते।
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यह समुदाय हमेशा से अपनी निडरता और मातृभूमि के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता रहा है।
4. सामाजिक और राजनैतिक पुनर्जागरण
आधुनिक भारत में इस समुदाय ने शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है:
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डॉ. बी.आर. अंबेडकर: हालांकि वे महार समुदाय से थे, लेकिन उनके द्वारा शुरू किए गए दलित आंदोलन और भारतीय संविधान ने चमार जाति सहित सभी वंचित वर्गों को कानूनी अधिकार और गरिमा दिलाई।
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बाबू जगजीवन राम: भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री, जिन्होंने देश की राजनीति और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. कला और कौशल
ऐतिहासिक रूप से, यह जाति चर्मशिल्प (Leather Craft) की विशेषज्ञ रही है। प्राचीन भारत के युद्धों में सैनिकों के कवच, ढाल और घोड़ों की जीन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य इसी समुदाय द्वारा किया जाता था, जो सीधे तौर पर सैन्य तंत्र का हिस्सा था।
निष्कर्ष: चमार जाति का इतिहास केवल गुलामी या दमन का नहीं, बल्कि संघर्ष, स्वाभिमान, भक्ति और वीरता का इतिहास है। आज यह समुदाय शिक्षा, प्रशासन, सेना और व्यापार के हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहा है।
