भोजन-दान की महत्ता

भोजन-दान की महत्ता बताने के लिए अनाथपिण्डिक गृहपति को भगवान ने यह कहा “आर्य-श्रावक जब भोजन का दान करता है तब ग्रहण करने वाले को चार चीजें देता है।
“आयु का दान करता है, वर्ण का दान करता है, सुख का दान करता तथा बल का दान करता है। आयु का दान करने से दिव्य अथवा मानुषी आयु का भागी होता है, वर्ण का दान करने से दिव्य अथवा मानुषी वर्ण का भागी होता है, सुख का दान करने से दिव्य अथवा मानुषी सुख का भागी होता है, बल का दान करने से दिव्य अथवा मानुषी बल का भागी होता है।
“हे गृहपति! भोजन का दान करने वाला आर्य-श्रावक भोजन ग्रहण करने वाले को इन चार चीजों का दान करता है।”
“यो सञ्ञतानं परदत्तभोजिनं,
कालेन सक्कच्च ददाति भोजनं ।
चत्तारि ठानानि अनुप्पवेच्छति,
आयुञ्च वण्णञ्च सुखं बलञ्च ॥
“सो आयुदायी वण्णदायी,
सुखं बलं ददो नरो
दीघायु यसवा होति,
यत्थ यत्थूपपज्जति ॥”
– अङ्गुत्तरनिकाय १.४.५८, सुदत्तसुत्त
[जो दूसरों का दिया खाने वाले संयत जनों को योग्य विधि से भोजन का दान करता है वह उन्हें चार चीजों का दान करता है – आयु, वर्ण, सुख तथा बल । वह आयु, वर्ण, सुख तथा बल का दान करने वाला जहां कहीं भी जन्म ग्रहण करता है वह दीर्घायु एवं यशस्वी होता है।]
पुस्तक: भगवान बुद्ध के अग्रउपासक “अनाथपिण्डिक” (दायकों में “अग्र”) ।
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
भवतु सब्ब मंङ्गलं !!