झलकारी बाई कोरी की जीवनी

👶 प्रारंभिक जीवन
  • जन्म: 22 नवंबर 1830, भोजला ग्राम (झांसी के पास) में एक निर्धन कोरी (कुर्मी/कोली समुदाय) परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवर सिंह कोरी, और माता का नाम जमुना देवी था।
  • माँ की मृत्यु बचपन में हो गयी थी, जिसके बाद पिता ने उन्हें एक बेटे की तरह पाला और घुड़सवारी तथा अस्त्र संचालन की प्रशिक्षण दिया
  • बचपन से ही वे साहसी एवं निडर थीं: एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक बाघ से हुई, जिसे उन्होंने कुल्हाड़ी से मार गिराया। इसी प्रकार एक तेंदुए को भी मौत के घाट उतारा था।

❤️ विवाह एवं सेना में प्रवेश
  • विवाह पूरन सिंह कोरी से हुआ, जो झाँसी रानी लक्ष्मीबाई की सेना में तोपची थे। गांववालों की प्रेरणा से यह विवाह संपन्न हुआ।
  • उनकी बहादुरी और रूप-रंग की similarity के कारण झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की सेना में शामिल हो गईं, और बाद में महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति बनीं।

🛡️ 1857 का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
  • 1858-59 में अंग्रेजों ने झाँसी पर आक्रमण किया। रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी ने बड़ी सूझबूझ दिखाई—उन्होंने रानी के वेश में दुश्मन को चकमा दिया ताकि रानी सुरक्षित निकल जाएँ।
  • वह चार दिनों तक रानी के रूप में युद्ध करती रहीं, जिससे अंग्रेजों को भ्रम हुआ और रानी सुरक्षित बाहर निकल सकीं। इस समय उनका पति पूरन सिंह किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया।

⚰️ शहादत एवं स्मृति
  • उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया और अपने साहसपूर्वक युद्ध के चलते 4 अप्रैल 1857 (कुछ स्रोतों में 5 अप्रैल 1858 का उल्लेख है) को वीरगति प्राप्त की। युद्धस्थल पर उन्होंने अंतिम शब्दस्वर में ‘जय भवानी’ उद्घोष किया।
  • उनका बलिदान तभी संभव हुआ जब किले में विश्वासघात हुआ; बावजूद इसके वे अंतिम क्षण तक लड़ी रहीं।

🏛️ विरासत, सम्मान और स्थानीय पहचान
  • माथिलीशरण गुप्त की कविता में उनकी वीरता को अमर किया गया:
    “जाकर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी …
  • 2001 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया
  • भाषा, साहित्‍य, और लोककाव्यों में उनकी गाथा स्थान पाई—रचनाकारों जैसे बी. एल. वर्मा (झाँसी की रानी), रामचंद्र हेरन (माटी), भवानी शंकर विशारद, मोहनदास नैमिशराय, माता प्रसाद आदि ने उनकी जीवनी कथा लिखी।
  • अर्जित पहचान: कोरी समुदाय और अन्य दलित समूहों ने झलकारी की जयंती ‘शहीद दिवस’ की तरह मनाना शुरू किया तथा उनके नाम पर संस्‍थान स्थापित किए।
  • स्मारक एवं स्थापित विभूतियाँ: इंदौर, आगरा तथा लखनऊ में उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गईं; झाँसी किले में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा संग्रहालय स्थापित किया गया।

📋 संक्षिप्त विवरण सारांश
विषय विवरण
पूरा नाम झलकारी बाई कोरी
जन्म 22 नवंबर 1830, भोजला गाँव, झाँसी क्षेत्र
निधन लगभग 4 अप्रैल 1857 (या 5 अप्रैल 1858 के मध्य)
पिता / माता सदोवर सिंह / जमुना देवी
पति पूरन सिंह कोरी
भूमिका झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना की सेनापति, सलाहकार और हमशक्ल
प्रसिद्धि अंग्रेजों को धोखा देकर रानी को सुरक्षित निकालना; ‘जय भवानी’ तक अनुमति
सम्मान डाक टिकट, प्रतिमाएं, साहित्यिक लेखन, शहीद दिवस

🏁 निष्कर्ष
झलकारी बाई केवल एक योद्धा नहीं थीं, बल्कि स्वतंत्रता की अलख जगाने वाली वीरांगना थीं। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता, धैर्य, एवं अदम्य साहस से इतिहास रचा। उनका नाम आज भी बुंदेलखंड की वीरांगना और समर्पित भक्त के रूप में अमर है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि समाज की सीमाओं को पार कर वीरता और आदर्श की बुलंदियों तक पहुंचा जा सकता है।