वो बात करो पैदा, तुम अपनी जुबानोंमे
दुनिया भी कहे कुछ है, इन भीम दीवानों में
ईमान की ये दौलत, मिलती नहीं महलों में
ये चीज़ तो मिलती है, मुफ़लिस के मकानों में
गैरों को बना अपना, अपनों से मोहब्बत कर
इन्साफ बराबर कर, अपनों में बेगानों में
गर भीम नहीं होते, हम आज कहाँ जाते
जुल्मों में पले थे हम, उभरे है तूफानों में
बहकायेगा क्या कोई शैतान, दलितों को
हम आग लगा देंगे, बर्फीली चट्टानों में
हक़ अपना बराबर हम, अब छीन के ले लेंगे
है आज भी वो ताकत, बूढ़ो में जवानों में
छोटे को गिराओ ना, नजरों से बड़े लोगों
हीरे भी निकलते है, गिट्टी की खदानों में
गायक: प्रकाशनाथ पाटणकर