उदा देवी पासी की जीवनी

उदा देवी पासी की जीवपूरा नाम: उदा देवी पासी
जन्म: 19वीं सदी की शुरुआत (सटीक तिथि ज्ञात नहीं)
जन्म स्थान: अवध, उत्तर प्रदेश
जाति: पासी (दलित समाज)
पति: मक्का पासी (अवध सेना के सिपाही)
मृत्यु: 16 नवम्बर 1857, सिकंदर बाग, लखनऊ
परिचय: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना

🌿 परिचय:
उदा देवी पासी 1857 की स्वतंत्रता क्रांति की एक दलित वीरांगना थीं। जब रानी लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, अवंतीबाई जैसी वीर महिलाएं अंग्रेजों से लड़ रही थीं, उसी समय उदा देवी ने भी अवध की धरती पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए

⚔️ क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत:
  • उदा देवी के पति मक्का पासी नवाब वाजिद अली शाह की सेना में सिपाही थे।
  • जब 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हुई, तो मक्का पासी लड़ते हुए शहीद हो गए।
  • पति की मृत्यु के बाद उदा देवी ने भी अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी।
  • उन्होंने बेगम हजरत महल से संपर्क किया और उनके नेतृत्व में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गईं।

🪖 सिकंदर बाग की लड़ाई:
  • 16 नवम्बर 1857 को लखनऊ के सिकंदर बाग में अंग्रेजों और भारतीय सैनिकों के बीच भयंकर युद्ध हुआ।
  • उदा देवी ने एक पीपल के पेड़ पर चढ़कर पेड़ की डालियों से छिपकर अंग्रेजों पर निशाना साधा
  • उन्होंने 20 से अधिक अंग्रेज सिपाहियों को मार गिराया।
  • अंत में अंग्रेजों को जब उनके छिपने का स्थान पता चला, तो उन्होंने गोली मारकर उदा देवी को शहीद कर दिया।

🕊️ बलिदान:
उदा देवी ने अपना प्राण न्योछावर करके यह सिद्ध कर दिया कि भारत की स्वतंत्रता के लिए दलित महिलाएं भी किसी से पीछे नहीं थीं।
उनका बलिदान आज भी दलित चेतना और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है।

🏵️ विरासत:
  • हर साल 16 नवम्बर को लखनऊ के सिकंदर बाग में “उदा देवी शहीद स्मृति दिवस” मनाया जाता है।
  • दलित समाज उन्हें ‘शहीद वीरांगना’ के रूप में सम्मानित करता है।
  • उनका नाम भारत की क्रांतिकारी महिलाओं की सूची में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

🔸 निष्कर्ष:
उदा देवी पासी की कहानी साहस, आत्मबलिदान और देशभक्ति की मिसाल है। उन्होंने अपने पति की शहादत का बदला लिया और देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। वे भारत की स्वतंत्रता संग्राम की अनसुनी लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण वीरांगना थीं।