📛 नाम: श्री नारायण गुरु (Sree Narayana Guru)
📅 जन्म: 22 अगस्त 1856
स्थान: चेम्पाझंति गाँव, तिरुवनंतपुरम, केरल (तत्कालीन त्रावणकोर राज्य)
⚰ मृत्यु: 20 सितंबर 1928
स्थान: शिवगिरी मठ, वर्कला, केरल
🧬 जाति/समुदाय: एझावा (Ezhava) – यह समुदाय उस समय तथाकथित “अवर्ण” या “अस्पृश्य” माना जाता था।
🧒🏻 प्रारंभिक जीवन:
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नारायण गुरु का जन्म एक गरीब लेकिन धार्मिक परिवार में हुआ।
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बचपन से ही वे तेजस्वी, शांतिप्रिय और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे।
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उन्हें संस्कृत, वेद, उपनिषद, योग, आयुर्वेद आदि की शिक्षा एक नंपूतिरि ब्राह्मण गुरु से मिली।
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उन्होंने विवाह नहीं किया और संन्यास का मार्ग अपनाया।
🕉️ अध्यात्मिक जीवन और विचार:
श्री नारायण गुरु आध्यात्मिक संत, दार्शनिक, सामाजिक सुधारक, और कवि थे।
उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास और छुआछूत के खिलाफ आवाज़ उठाई।
उन्होंने कहा था:
“एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर – मानवता के लिए।”
(One Caste, One Religion, One God for mankind)
⚔️ सामाजिक सुधार कार्य:
🔹 जाति प्रथा के विरुद्ध:
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उन्होंने जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए अभियान चलाया।
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वे कहते थे कि ईश्वर सबका एक है, इसलिए भेदभाव धर्म के खिलाफ है।
🔹 अस्पृश्यता और मंदिर प्रवेश आंदोलन:
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1888 में अरुविपुरम में उन्होंने निचली जाति के लोगों के लिए शिवलिंग की स्थापना की — यह घटना एक क्रांतिकारी कदम था।
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यह दिखाता था कि भगवान सबके होते हैं — न कि केवल ब्राह्मणों के।
🔹 शिक्षा का प्रचार:
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उन्होंने कहा कि शिक्षा ही सामाजिक समानता की कुंजी है।
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उन्होंने कई स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थान खोले।
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दलित और पिछड़े वर्गों के लिए उन्होंने आधुनिक शिक्षा के द्वार खोले।
🕍 शिवगिरी मठ:
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1904 में उन्होंने शिवगिरी मठ की स्थापना की, जो सामाजिक और आध्यात्मिक सुधारों का केंद्र बना।
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यहाँ से उन्होंने नशाबंदी, स्वच्छता, शिक्षा, उद्योग, जाति-विरोध, आध्यात्मिक उन्नति जैसे 10 आदर्शों को बढ़ावा दिया।
📚 साहित्यिक योगदान:
श्री नारायण गुरु एक महान संस्कृत और मलयालम कवि भी थे।
उनकी प्रमुख रचनाएँ:
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आत्मोपदेशशतकं (100 आत्मिक उपदेश)
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दर्शनमाला (दर्शनशास्त्र पर आधारित)
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अर्जुनोपदेशम्
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ज्ञानदर्शना
इनमें अद्वैत वेदांत, मानवता, एकता, और सत्य का बोध कराया गया है।
🏆 सम्मान और विरासत:
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केरल और दक्षिण भारत में उन्हें आधुनिक युग के संत और सामाजिक क्रांति के जनक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
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महात्मा गांधी भी उनके विचारों से प्रभावित थे।
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उनकी शिक्षाओं ने केरल में जाति प्रथा को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई।
🇮🇳 भारत सरकार द्वारा सम्मान:
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2006 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
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उनके जन्म दिवस (22 अगस्त) को “श्री नारायण गुरु जयंती” के रूप में मनाया जाता है।
✊ निष्कर्ष:
श्री नारायण गुरु ने अपने जीवन को समाज सेवा, आध्यात्मिक ज्ञान और समानता के लिए समर्पित किया।
उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्ची भक्ति वही है जो मानव सेवा और समानता में विश्वास रखती है।
वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।