संत रविदास, जिनका जन्म विशेष रूप से दलित समुदाय के अग्रणी संतों में से एक के रूप में माना जाता है, भारतीय इतिहास और साहित्य में महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उनका जन्म और जीवनकाल निर्धारित नहीं है, लेकिन विशेष रूप से 15वीं और 16वीं शताब्दी के बीच माना जाता है।
रविदास जी ने अपनी रचनाओं में समाज में समानता, मानवता, और भगवान की दिव्यता की महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत की। उन्होंने विभिन्न भाषाओं में अपने भगवान की भक्ति, भगवान की उपासना और जीवन में निष्कलंकता की महत्वपूर्णता पर गीत और पद रचे।
रविदास जी के विचार और उनके ग्रंथों का प्रचार दलित समुदाय के आराक्षित स्थान की मांग और समाज में समानता के लिए एक महत्वपूर्ण कारक बने। उनके द्वारा प्रतिस्थापित किए गए सिद्धांत ने दलित समुदाय के लोगों को साहित्यिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से आत्म-सम्मान और सशक्तिकरण की दिशा में मार्गदर्शन किया।
रविदास जी की रचनाओं और उनके संदेश का प्रभाव आज भी दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से दिखता है, जहां उन्हें एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आध्यात्मिक आदर्श के रूप में माना जाता है।