🙏 पूरा नाम: देविदास डेबूजी झिंगराजी जानोरकर
प्रसिद्ध नाम: संत गाडगे बाबा
जन्म: 23 फरवरी 1876
जन्म स्थान: शेंडगांव, जिला अमरावती, महाराष्ट्र
मृत्यु: 20 दिसम्बर 1956
धर्म: हिन्दू
कार्य: समाज सुधारक, संत, भिक्षुक, सेवाभावी
👶 प्रारंभिक जीवन:
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संत गाडगे बाबा का जन्म एक गरीब धोबी परिवार में हुआ था।
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उनका वास्तविक नाम था देविदास डेबूजी।
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बचपन से ही वे समाज में फैली असमानता, अंधश्रद्धा, छुआछूत, गंदगी आदि से व्यथित रहते थे।
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वे अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन जीवन के अनुभवों और नैतिकता से उनका मन बहुत प्रबुद्ध था।
🧹 जीवन का उद्देश्य और कार्य:
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उन्होंने जीवन भर स्वच्छता, शिक्षा, समानता, और सेवा का संदेश दिया।
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वे जिस गांव में जाते, वहाँ सबसे पहले सड़कें, नालियां, और मंदिरों की सफाई करते थे।
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वे अपने साथ झाड़ू और टोकरी रखते थे — इसलिए लोग उन्हें “झाड़ूवाले बाबा” भी कहते थे।
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उन्होंने किसी धर्म या जाति को नीचा नहीं दिखाया, बल्कि सबको एक नजर से देखने की प्रेरणा दी।
📢 समाज सुधार:
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उन्होंने अंधविश्वास, दहेज प्रथा, नशाखोरी, छुआछूत, और जात-पात के खिलाफ लोगों को जागरूक किया।
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जगह-जगह पर कीर्तन और प्रवचन के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया।
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वे लोगों से कहते:
“देव नाही रे, देवा पेक्षा सेवा मोठी!”
(भगवान नहीं, भगवान से बड़ी सेवा है!)
🏥 सेवाकार्य और संस्थाएँ:
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उन्होंने अपने जीवन की कमाई से धर्मशालाएं, विद्यालय, पशु-छाया शेड, और अस्पताल बनवाए।
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उन्होंने कभी किसी से चंदा नहीं मांगा, जो मिला वही गरीबों के लिए लगा दिया।
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उन्होंने लहुजी सालवे, फुले, और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे विचारकों को भी सम्मान दिया।
🧘 निर्लोभी और त्यागी जीवन:
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गाडगे बाबा ने संपत्ति, प्रतिष्ठा, और आराम को कभी महत्त्व नहीं दिया।
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वे भिक्षा मांगकर खाते थे और उसी से दूसरों की सेवा करते थे।
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वे बहुत ही साधारण वेशभूषा में रहते थे: फटी धोती, कुर्ता, और सिर पर गमछा।
🏅 स्मृति और सम्मान:
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महाराष्ट्र सरकार ने उनके सम्मान में “संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान” शुरू किया।
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“संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय” भी उनके नाम पर है।
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महाराष्ट्र के गाँवों में उनकी प्रतिमाएं लगाई गई हैं।
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हर वर्ष उनकी जयंती (23 फरवरी) और पुण्यतिथि (20 दिसंबर) मनाई जाती है।
🧹 ‘झाड़ू’ बना उनका प्रतीक:
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वे जहां भी जाते सबसे पहले वहां सफाई करते – मंदिर, गांव, स्कूल, रास्ते – सब कुछ।
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उनका मानना था कि “जहां गंदगी है वहां भगवान नहीं बसते।”
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उन्होंने झाड़ू को ईश्वर की पूजा से भी ऊंचा दर्जा दिया।
📢 प्रवचन और कीर्तन का माध्यम:
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उन्होंने गांव-गांव जाकर कीर्तन व प्रवचन के ज़रिए लोगों को बुराइयों से दूर रहने को कहा।
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उनके प्रवचन सरल भाषा, लोकगीत और हास्य के साथ होते थे – जिससे आम जनता तुरंत जुड़ती थी।
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वे कहते थे:
“मंदिरात जाऊ नका, रस्ते साफ करा – तिथं देव सापडेल!”
(मंदिर मत जाओ, रास्ते साफ करो – वहीं भगवान मिलेंगे!)
👥 जात-पात के विरोधी:
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उन्होंने खुले मंच से कहा:
“कोणत्याही माणसाचा जन्माने नीच नाही – कर्मानेच नीचता येते.”
(किसी इंसान का जन्म उसे नीचा नहीं बनाता – कर्म ही तय करते हैं।) -
वे सभी धर्मों और जातियों के साथ एक समान व्यवहार करते थे।
👣 डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर से संबंध:
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संत गाडगे बाबा, बाबासाहेब आंबेडकर के समकालीन और उनके आदर्शों के साथी थे।
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बाबासाहेब ने उन्हें सत्य और सामाजिक समता का महान संदेशवाहक कहा था।
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गाडगे बाबा ने अपना शरीर मृत्यु के बाद मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर दिया – यह उस समय बहुत ही दुर्लभ बात थी।
🏥 सेवाकार्य और निर्माण कार्य:
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उन्होंने अपने जीवन में जो भी भिक्षा में मिला, उससे कई काम किए:
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धर्मशालाएं
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गौशालाएं
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स्कूल
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पानी टंकी / प्याऊ
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मंदिरों की सफाई और निर्माण
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वे कहते थे:
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“जो खुद खाए वो इंसान है, जो दूसरों को खिलाए वो भगवान है!”
📘 उनके विचार आज के समाज के लिए क्यों ज़रूरी हैं?
मुद्दा | संत गाडगे बाबा का समाधान |
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गंदगी | स्वच्छता को पूजा जैसा मानो |
जातिवाद | इंसानियत को धर्म बनाओ |
अंधविश्वास | वैज्ञानिक सोच और शिक्षा अपनाओ |
स्वार्थ | सेवा और त्याग को जीवन में उतारो |
🏅 सरकारी योजनाएं और सम्मान:
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“संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान”: महाराष्ट्र सरकार द्वारा गांवों में स्वच्छता बढ़ाने के लिए।
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“संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ”: अमरावती विश्वविद्यालय का नाम उनके सम्मान में रखा गया।
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कई ट्रस्ट, संस्थाएं, और NGOs आज भी उनके नाम से सामाजिक काम कर रही हैं।
🕯️ मृत्यु:
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20 दिसम्बर 1956 को पावनार आश्रम (जिला वर्धा) में उनका निधन हुआ।
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मृत्यु से पूर्व उन्होंने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को अपना पूरा शरीर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए दान कर दिया।
✨ प्रसिद्ध वचन (Quotes):
“स्वच्छता ही सच्चा धर्म है।”
“भगवान को मंदिर में मत ढूंढो, जरूरतमंद की सेवा में ढूंढो।”
“अंधश्रद्धा छोड़ो, सच्चा ज्ञान लो।”