🙏 पूरा नाम: बसवेश्वर / बसवन्ना
📛 उपनाम:** संत बसवन्ना, बसवेश्वर, विश्वगुरु
🗓 जन्म: लगभग 1105 ईस्वी
🏡 जन्म स्थान: इंगलेगावी, बीजापुर जिला, कर्नाटक (भारत)
🕯 निधन: लगभग 1167 ईस्वी
🌼 धर्म: वीरशैव (लिंगायत धर्म के प्रवर्तक)
🌟 परिचय:
संत बसवन्ना एक महान समाज सुधारक, कवि, और धार्मिक संत थे, जिन्होंने लिंगायत धर्म की स्थापना की। उन्होंने सामाजिक भेदभाव, जातिवाद, मूर्तिपूजा, पाखंड, और स्त्री-पुरुष असमानता का विरोध किया।
उनका संदेश था –
“कार्य ही पूजा है” और “सभी मनुष्य समान हैं”।
🧒 प्रारंभिक जीवन:
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बसवन्ना एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे।
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बचपन से ही वे धार्मिक और समाज के अन्यायपूर्ण ढांचे को समझने लगे थे।
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उन्होंने मूर्तिपूजा, जातिवाद और अंधविश्वास का विरोध किया।
📚 शिक्षा:
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उन्होंने कूडलसंगम और काशी (वाराणसी) में वेद, शास्त्र और दर्शन की शिक्षा ली।
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उन्होंने कर्मकांड को नकारते हुए ‘इश्वर की उपासना कर्म और निष्ठा से होनी चाहिए’ यह सिखाया।
🛕 लिंगायत धर्म की स्थापना:
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बसवन्ना ने लिंगायत संप्रदाय की स्थापना की, जिसमें केवल ईश्वर (शिव) की आंतरिक भक्ति पर ज़ोर था।
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उन्होंने बताया कि ईश्वर बाहरी नहीं बल्कि अंतर्मन में है।
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उन्होंने शिवलिंग को व्यक्तिगत प्रतीक (इस्टलिंग) के रूप में अपनाया।
🧹 समाज सुधार कार्य:
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जाति व्यवस्था का विरोध:
उन्होंने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसके कर्म से होनी चाहिए, न कि उसकी जाति से। -
स्त्री समानता:
बसवन्ना ने महिलाओं को भी बराबरी का स्थान दिया और उन्हें धार्मिक मंचों पर हिस्सा लेने की अनुमति दी। -
अन्याय और पाखंड का विरोध:
उन्होंने मंदिरों में होने वाले भेदभाव और धन के दुरुपयोग का विरोध किया। -
अर्थ और नैतिकता:
उन्होंने सिखाया कि जीवन में धन का सही उपयोग और ईमानदारी से कमाई जरूरी है।
📝 वचन साहित्य (Vachana Sahitya):
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उन्होंने कन्नड़ भाषा में ‘वचन’ (छोटे दोहे/उपदेश) लिखे।
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वचनों में उन्होंने आसान भाषा में गहरी बातें समझाई, जैसे –
“मंदिर क्या है? जहाँ सत्य है, वहीं शिव है।”
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उनके साथ-साथ अनेक अनुयायियों ने भी वचन साहित्य को समृद्ध किया, जैसे:
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अक्का महादेवी
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अल्लमा प्रभु
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चन्ना बसवन्ना
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🤝 अनेक जातियों को एकत्रित करना:
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उन्होंने अनुभव मंटप की स्थापना की, जहाँ सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर विचार-विमर्श करते थे।
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यह भारत का पहला लोकतांत्रिक धार्मिक मंच था।
🕊 निधन और विरासत:
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संत बसवन्ना का निधन लगभग 1167 ई. में हुआ।
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आज भी कर्नाटक, महाराष्ट्र, और अन्य राज्यों में उनके अनुयायी लिंगायत धर्म को मानते हैं।
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भारत सरकार ने 1959 में उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
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लंदन के संसद भवन में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है।
🌟 प्रेरणादायक वचन (उद्धरण):
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“कार्य ही पूजा है।”
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“जाति नहीं, कर्म महत्वपूर्ण है।”
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“सच्चा धर्म वह है जो सबको जोड़े, न कि तोड़े।”