महार रेजिमेंट – भारतीय सेना का वीर गौरव


भारत की आज़ादी और सुरक्षा के इतिहास में कई वीर रेजिमेंट्स ने अपना योगदान दिया है, लेकिन कुछ रेजिमेंट्स ऐसी हैं जिनका इतिहास सिर्फ वीरता का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और आत्म-सम्मान की मिसाल भी है।
महार रेजिमेंट ऐसी ही एक गौरवशाली सैन्य इकाई है, जिसने न सिर्फ दुश्मनों से लड़ाई लड़ी, बल्कि जातिगत भेदभाव और सामाजिक उपेक्षा से भी डटकर मुकाबला किया।
यह रेजिमेंट भारत के दलित समाज की शौर्यगाथा है – स्वाभिमान, समर्पण और संघर्ष की प्रतीक।


🛡️ महार रेजिमेंट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • मूल स्थापना: 1768 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा।

  • पुनर्गठन: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान (1941 में) फिर से सक्रिय किया गया।

  • स्थायी गठन: 1941 में भारतीय सेना की एक स्थायी रेजिमेंट के रूप में पुनः संगठित।

ब्रिटिश काल में महार सैनिकों ने अंग्रेज़ों के अधीन मराठा युद्धों, पेशवा शासन, अफगान युद्ध और बर्मा अभियान में वीरता से भाग लिया।
फिर भी 1857 के बाद उन्हें ‘फाइटिंग क्लास’ से बाहर कर दिया गया था, क्योंकि वे दलित थे।


✊ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की भूमिका:

  • डॉ. आंबेडकर ने महारों की सैन्य परंपरा और वीरता को पुनः मान्यता दिलाने के लिए सरकार से अनुरोध किया।

  • उनके प्रयासों से ही 1941 में “महार रेजिमेंट” को पुनः भारतीय सेना में संगठित किया गया।

  • यह कदम केवल सैन्य दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्वाभिमान के लिए एक क्रांतिकारी निर्णय था।

“अगर देश की रक्षा में महार पिछड़े नहीं हैं, तो सामाजिक अधिकारों में उन्हें क्यों पीछे रखा जाए?” – डॉ. आंबेडकर


🏅 वीरता और युद्धों में योगदान:

युद्ध/अभियान भूमिका
द्वितीय विश्व युद्ध बर्मा और मलाया फ्रंट पर वीरता दिखाई
भारत-पाक युद्ध (1965 & 1971) पंजाब व राजस्थान मोर्चों पर प्रभावी योगदान
कारगिल युद्ध (1999) सेना के पीछे मजबूत लॉजिस्टिक व सपोर्ट
आंतरिक सुरक्षा कार्य नगालैंड, कश्मीर, पंजाब में अहम भूमिका

महार रेजिमेंट को 20 से अधिक युद्ध सम्मान (Battle Honours) और अनेक वीरता पदक प्राप्त हैं।


🎖️ पहचान और आदर्श:

  • मोटो (ध्वजवाक्य): “यश सिद्धि” (Glory is Success)

  • मुख्यालय: सागर (मध्य प्रदेश)

  • रेजिमेंटल सेंटर: महार रेजिमेंटल सेंटर, सागर

  • रेजिमेंट दिवस: 1 अक्टूबर


🌟 सामाजिक प्रभाव:

  • महार रेजिमेंट ने यह साबित किया कि जाति नहीं, बल्कि कर्तव्य, अनुशासन और देशभक्ति ही असली पहचान है।

  • इस रेजिमेंट ने दलित समाज को सैन्य सम्मान, गरिमा और राष्ट्रभक्ति की नई पहचान दी।

  • यह रेजिमेंट समानता और साहस का प्रेरणास्त्रोत बन गई है।

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