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🏵️ परिचय:
कोतवाल धन सिंह गुर्जर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उन्होंने मेरठ से अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़काई और पहले ही दिन ब्रिटिश सत्ता की नींव हिला दी। वह एक बहादुर योद्धा, राष्ट्रभक्त और साहसी नेतृत्वकर्ता थे, जिन्होंने पुलिस विभाग में रहते हुए भी देशभक्ति को प्राथमिकता दी।
👶 जन्म और प्रारंभिक जीवन:
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जन्म: 27 नवंबर 1814
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स्थान: पाचंली खुर्द गाँव, मेरठ, उत्तर प्रदेश
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जाति: गुर्जर
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पिता का नाम: जोधा सिंह गुर्जर
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पेशा: अंग्रेज सरकार में कोतवाल (मुख्य पुलिस अधिकारी)
धन सिंह गुर्जर एक किसान परिवार में जन्मे। पढ़ाई-लिखाई के बाद वह अंग्रेजों की पुलिस सेवा में शामिल हुए और मेरठ में कोतवाल के पद पर तैनात हुए।
⚔️ 1857 की क्रांति में भूमिका:
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10 मई 1857 को मेरठ में सैनिकों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ।
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कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने विद्रोही सैनिकों और ग्रामीणों का साथ दिया।
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उन्होंने जेल पर हमला करवाया और 836 से अधिक कैदियों को मुक्त कराया।
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कोतवाली की पुलिस को आदेश दिया कि वे हस्तक्षेप न करें।
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उन्होंने पूरे शहर में क्रांति का बिगुल बजाया और “मारो फिरंगी को” का नारा दिया।
उनके नेतृत्व में मेरठ से शुरू हुई यह क्रांति जल्द ही दिल्ली और देश के अन्य भागों में फैल गई।
🪦 बलिदान:
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अंग्रेजों ने क्रांति को कुचलने के लिए पाचंली खुर्द गाँव पर हमला किया।
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धन सिंह गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया गया।
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4 जुलाई 1857 को उन्हें मेरठ के एक चौराहे पर सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई।
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गाँव के सैकड़ों लोगों को भी मारा गया और कई घर जलाए गए।
🌟 विरासत और सम्मान:
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धन सिंह गुर्जर को 1857 की क्रांति के पहले जननायक के रूप में याद किया जाता है।
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उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशिक्षण में उनकी वीरता की कहानी पढ़ाई जाती है।
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मेरठ में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है।
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कई स्थानों पर सड़कों, पार्कों और कार्यक्रमों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
📜 निष्कर्ष:
कोतवाल धन सिंह गुर्जर एक असाधारण देशभक्त थे जिन्होंने अपने पद और जीवन की परवाह न करते हुए भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। उनका बलिदान आज भी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है।
वे सचमुच 1857 के पहले सिपाही विद्रोह के गुमनाम नायक थे जिनकी गाथा अब धीरे-धीरे उजागर हो रही है।