कर्पूरी ठाकुर की जीवनी

🧑‍🏫 परिचय:
कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर समाजवादी नेता और बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके एक सच्चे जननेता थे। उन्हें “जननायक” की उपाधि से नवाजा गया। वे पिछड़े वर्गों, दलितों और गरीबों की आवाज बनकर उभरे और सामाजिक न्याय के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।

👶 जन्म और प्रारंभिक जीवन:
  • पूरा नाम: कर्पूरी ठाकुर
  • जन्म: 24 जनवरी 1924
  • जन्मस्थान: पितौंझिया गाँव, समस्तीपुर जिला, बिहार
  • पिता का नाम: गोकुल ठाकुर
  • जाति: नाई (ओबीसी वर्ग)
  • मृत्यु: 17 फरवरी 1988, पटना

🎓 शिक्षा:
  • प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई।
  • आगे की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की।
  • पढ़ाई के दौरान ही स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ गए और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लिया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
  • 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान जेल गए।
  • 26 महीने जेल में रहने के बाद रिहा हुए।
  • जीवनभर गांधीवादी और समाजवादी विचारधारा के अनुयायी रहे।

🗳️ राजनीतिक करियर:
  • 1952 में पहली बार विधायक चुने गए।
  • बिहार के शिक्षा मंत्री (1957) रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी को अनिवार्य न कर केवल वैकल्पिक बनाया।
  • 1970 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
  • दूसरी बार 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मुख्यमंत्री बने।

⚖️ मुख्य कार्य और निर्णय:
  1. आरक्षण लागू करना (1978):
    पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने की शुरुआत की।
    ➤ इस कारण उन्हें उच्च जातियों के विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन वे अडिग रहे।
  2. सरल जीवन:
    वे सादगी और ईमानदारी के प्रतीक थे — सरकारी बंगले और लाल बत्ती से दूर रहते थे।
  3. भ्रष्टाचार के विरोधी:
    कर्पूरी ठाकुर ने हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और सच्चाई के साथ शासन किया।
  4. समाजवाद का प्रचार:
    राममनोहर लोहिया के विचारों को अपनाया और “समानता”, “समाजवाद” और “जातीय न्याय” की बात की।

🏆 सम्मान और उपाधियाँ:
  • उन्हें “जननायक” की उपाधि जनता ने दी।
  • उनकी जयंती 24 जनवरी को हर साल “कर्पूरी ठाकुर जयंती” के रूप में मनाई जाती है।
  • उनके नाम पर कई संस्थान, योजनाएं और सड़कों का नाम रखा गया है।

🕯️ निधन:
  • 17 फरवरी 1988 को पटना में उनका निधन हुआ।
  • उनके निधन पर पूरे बिहार और देश ने एक सच्चे नेता को खो दिया।

📜 निष्कर्ष:
कर्पूरी ठाकुर भारतीय राजनीति में सादगी, ईमानदारी और सामाजिक न्याय का प्रतीक रहे। उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के अधिकार के लिए हमेशा संघर्ष किया।
उनकी विचारधारा और कार्य आज भी भारत में सामाजिक न्याय के आंदोलनों की प्रेरणा है।