ज्योतिबा फुले की जीवनी

🟢 पूरा नाम: ज्योतिराव गोविंदराव फुले

🟢 जन्म: 11 अप्रैल 1827

🟢 जन्म स्थान: सतारा जिला, महाराष्ट्र (अब पुणे)

🟢 मृत्यु: 28 नवंबर 1890

🟢 पत्नी: सावित्रीबाई फुले

🟢 पेशा: समाज सुधारक, लेखक, विचारक, शिक्षाशास्त्री, किसान नेता

🟢 धर्म: हिन्दू (सामाजिक सुधार के पक्षधर)


🔸 परिचय:

ज्योतिबा फुले भारत के महान समाज सुधारक थे जिन्होंने स्त्रियों, शूद्रों और दलितों की शिक्षा और अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने जातिवाद, ब्राह्मणवाद, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा उत्पीड़न जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और समानता और शिक्षा का प्रचार किया।


🔸 प्रारंभिक जीवन:

ज्योतिराव फुले का जन्म एक माली (माली जाति) परिवार में हुआ। उनका परिवार फूल बेचने और बागवानी का कार्य करता था। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, फिर भी वे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। 7वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने समाज में फैली असमानता को अनुभव किया और उसका विरोध करना शुरू किया।


🔸 सामाजिक सुधार कार्य:

🔹 1. महिला शिक्षा का आरंभ:

  • 1848 में उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ाना शुरू किया।

  • भारत का पहला महिला विद्यालय पुणे में खोला गया।

  • सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं।

🔹 2. दलितों के अधिकारों की आवाज़:

  • उन्होंने शूद्रों और अतिशूद्रों को भी शिक्षा का अधिकार दिलाने का कार्य किया।

  • उन्होंने कहा कि धर्म और जाति के नाम पर किसी को भी शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता।

🔹 3. सत्यशोधक समाज की स्थापना (1873):

  • इसका उद्देश्य था:
    ▪ जात-पात का अंत
    ▪ ब्राह्मणों के धार्मिक वर्चस्व को चुनौती देना
    ▪ शोषित वर्गों को सामाजिक और धार्मिक स्वतंत्रता देना

  • उन्होंने सभी को समान मानने का संदेश दिया।

🔹 4. महिलाओं और विधवाओं के अधिकार:

  • उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन किया।

  • उन्होंने बाल हत्या विरोधी गृह (infanticide prevention home) की स्थापना की, जहाँ अनचाही विधवा संतान को सहारा मिल सके।


🔸 प्रमुख रचनाएँ:

  • तृतीय रत्न (नाटक)

  • गुलामगिरी (1873): ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ एक क्रांतिकारी पुस्तक

  • सहेजून घ्या (समाज सुधार पर लेख)


🔸 ज्योतिबा फुले के विचार:

  • “शिक्षा ही सबसे बड़ा शस्त्र है, जिससे सामाजिक क्रांति लाई जा सकती है।”

  • “धर्म वह है जो सबको बराबरी का अधिकार दे।”

  • उन्होंने हमेशा मानवता, समानता और तर्क का पक्ष लिया।


🔸 मृत्यु और विरासत:

  • ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर 1890 को हुआ।

  • उनके कार्यों की विरासत को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और अन्य समाज सुधारकों ने आगे बढ़ाया।

  • उन्हें आज सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, महात्मा फुले और शिक्षा के योद्धा के रूप में याद किया जाता है।


🔸 सम्मान:

  • भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।

  • कई विश्वविद्यालय, संस्थान, योजनाएँ उनके नाम पर चलाई जा रही हैं।

  • 11 अप्रैल को महात्मा फुले जयंती के रूप में मनाया जाता है।


🟡 निष्कर्ष:

ज्योतिबा फुले का जीवन जातिवाद, अंधविश्वास और अन्याय के खिलाफ एक प्रेरणादायक संघर्ष है। वे आज भी सामाजिक न्याय और शिक्षा के प्रतीक माने जाते हैं।