Skip to content
🟢 पूरा नाम: पंडित चंद्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’
🟢 जन्म: 2 मार्च 1885
🟢 जन्म स्थान: बनारस (अब वाराणसी), उत्तर प्रदेश
🟢 मृत्यु: 18 अप्रैल 1974
🟢 पेशा: लेखक, पत्रकार, इतिहासकार, समाज सुधारक
🟢 प्रसिद्धि: दलित इतिहास लेखन और बौद्ध धर्म प्रचारक
🟢 धर्म: प्रारंभ में हिंदू (कायस्थ जाति), बाद में बौद्ध
🔸 परिचय:
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु 20वीं शताब्दी के एक प्रमुख दलित विचारक, इतिहासकार, और हिंदी लेखक थे। उन्होंने दलितों, पिछड़ों और वंचित समुदायों के इतिहास और अधिकारों के पक्ष में आवाज उठाई। वे भारत में दलित साहित्य और बौद्ध चेतना के आरंभिक प्रेरक माने जाते हैं।
🔸 शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:
-
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
-
वे बचपन से ही पढ़ने-लिखने में रुचि रखते थे, इसीलिए उन्हें “जिज्ञासु” (जिज्ञासु = ज्ञान की चाह रखने वाला) उपनाम मिला।
-
उन्होंने स्वाध्याय से इतिहास, धर्म और समाज के गहरे अध्ययन की दिशा में कार्य किया।
🔸 दलित इतिहास और बौद्ध धर्म की ओर झुकाव:
-
जिज्ञासु जी ने दलित समाज के वास्तविक इतिहास को उजागर करने के लिए कार्य किया।
-
उन्होंने बौद्ध धर्म और डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
-
वे हिंदू वर्ण व्यवस्था के आलोचक रहे और बौद्ध धर्म को मानवता का धर्म मानते थे।
🔸 प्रमुख रचनाएँ:
उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें से प्रमुख हैं:
-
भारत के अछूत
-
चमारों का इतिहास
-
मूल भारतवासी और आर्य
-
संत रैदास का जीवनचरित
-
भगवान बुद्ध का यथार्थ इतिहास
-
ज्योतिबा फुले की जीवनी
-
शूद्र कौन थे? (डॉ. आंबेडकर की पुस्तक का हिंदी अनुवाद)
🔸 समाज सुधार कार्य:
-
उन्होंने दलित समाज को जागरूक करने के लिए लेखन, भाषण और संगठनात्मक कार्य किए।
-
उन्होंने जातिगत अन्याय, छुआछूत और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई।
-
जिज्ञासु प्रेस और बहुजन कल्याण पुस्तकमाला जैसे प्रकाशनों के माध्यम से दलित साहित्य का प्रचार-प्रसार किया।
🔸 डॉ. आंबेडकर से संबंध:
-
वे डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों से बहुत प्रभावित थे।
-
उन्होंने आंबेडकर की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद करके उत्तर भारत में बौद्ध चेतना और दलित आंदोलन को आगे बढ़ाया।
🔸 मृत्यु:
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु का निधन 18 अप्रैल 1974 को हुआ। उन्होंने जीवन भर दलित समाज के उत्थान के लिए कार्य किया और एक वैचारिक क्रांति की नींव रखी।
🔸 विरासत:
-
वे हिंदी दलित साहित्य के प्रथम विचारक और लेखक माने जाते हैं।
-
उत्तर भारत में बौद्ध पुनर्जागरण और बहुजन चेतना के वह प्रमुख स्तंभ थे।
-
उनकी रचनाएँ आज भी अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग और वंचित समाज को प्रेरणा देती हैं।
🟡 निष्कर्ष:
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु का जीवन ज्ञान, संघर्ष और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। उन्होंने न केवल वंचित वर्गों के इतिहास को लिखा, बल्कि उन्हें आत्म-सम्मान और चेतना की राह दिखाई। वे भारत में बुद्ध, फुले और आंबेडकर परंपरा के मजबूत स्तंभ थे।