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बौद्ध परंपरा से प्रेरित सुंदर और अर्थपूर्ण बच्चो के नाम

Buddhist Baby Names – Girls A आर्या (Arya) – श्रेष्ठ अमिता (Amita) – असीम आन्वी (Aanvi) – सौम्य अहिंसा (Ahimsa) – करुणा, अहिंसा B बोधि (Bodhi) – ज्ञान, बोध बुद्धिका (Buddhika) – बुद्धिमत्ता भावना (Bhavana) – ध्यान, साधना C चेतना (Chetana) – जागरूकता चारु (Charu) – सुंदर, सौम्य D दीपा (Deepa) – प्रकाश धम्मिका (Dhammika) […]

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बोधगया महाविहार मुक्ति आंदोलन | Bodhgaya Mahavihar Mukti Andolan Song

बोधगया महाविहार मुक्ति आंदोलन भारत के बौद्ध इतिहास का एक महत्वपूर्ण और संघर्षपूर्ण अध्याय है। यह आंदोलन बोधगया स्थित महाबोधि महाविहार को बौद्ध समुदाय के पूर्ण अधिकार में लाने के लिए शुरू किया गया था। भगवान बुद्ध को बोधि प्राप्ति का यह पवित्र स्थल सदियों तक बौद्धों से दूर रहा। इस आंदोलन को नई दिशा

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बाबासाहेब के अंतिम दिन: सच्ची कहानी और भावनात्मक प्रसंग

६ दिसंबर – डॉ. भीमराव आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस भारतीय इतिहास में ६ दिसंबर केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक वेदना, एक स्मृति और एक युग के समापन का प्रतीक है।यह वह दिन है जब लाखों लोगों के प्रेरणास्रोत, संविधान निर्माता, समाज सुधारक और मानवता के मसीहा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने इस दुनिया को अलविदा कहा।

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संविधान ने दलितों को क्या दिया? अधिकार, सुरक्षा और अवसर की कहानी

भारतीय संविधान केवल एक क़ानून की किताब नहीं, बल्कि समाज में समानता, न्याय और स्वतंत्रता का प्रतीक है। हमारे संविधान के निर्माता, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, ने विशेष रूप से यह सुनिश्चित किया कि दलित और अन्य पिछड़े वर्गों को समाज में बराबरी का दर्जा मिले। आज हम जानेंगे कि संविधान ने दलितों को क्या-क्या अधिकार

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भारत का संविधान: गौरव, उपलब्धि और एकता का प्रतीक

भारत का संविधान केवल एक लिखित दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र, हमारे अधिकारों और हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है। 26 जनवरी 1950 को जब भारतीय संविधान लागू हुआ, उस दिन भारत ने न केवल एक नया राजनीतिक ढांचा अपनाया, बल्कि एक ऐसे समाज का निर्माण किया जो समानता, न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित

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🧕🏽💔 दलित महिलाएं और दोहरा उत्पीड़न: यूपी में लिंग + जाति आधारित हिंसा पर रिपोर्ट

भारत की सामाजिक संरचना में जाति और लिंग दो ऐसे स्तंभ हैं जो सदियों से भेदभाव और उत्पीड़न का आधार बने हुए हैं। जब कोई महिला दलित होती है, तो उसे न केवल महिला होने के कारण लैंगिक शोषण, बल्कि नीची जाति से होने के कारण सामाजिक अपमान और हिंसा का दोहरा बोझ उठाना पड़ता

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कैदियों के संवैधानिक अधिकार: एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ प्रत्येक नागरिक को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। यह अधिकार केवल स्वतंत्र नागरिकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे लोग जो अपराध करके जेल में हैं, उन्हें भी कुछ विशेष संवैधानिक और मानवाधिकार प्राप्त होते हैं। यह विचार भारतीय न्याय व्यवस्था की गरिमा और मानवता को दर्शाता

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महार रेजिमेंट – भारतीय सेना का वीर गौरव

भारत की आज़ादी और सुरक्षा के इतिहास में कई वीर रेजिमेंट्स ने अपना योगदान दिया है, लेकिन कुछ रेजिमेंट्स ऐसी हैं जिनका इतिहास सिर्फ वीरता का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और आत्म-सम्मान की मिसाल भी है।महार रेजिमेंट ऐसी ही एक गौरवशाली सैन्य इकाई है, जिसने न सिर्फ दुश्मनों से लड़ाई लड़ी, बल्कि जातिगत भेदभाव और

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📿 बौद्ध धर्म का प्रभाव: दलित समाज की प्रगति की मूल आधारशिला!

भारत का सामाजिक इतिहास सदियों तक जाति-आधारित भेदभाव और शोषण से प्रभावित रहा है। विशेष रूप से दलित समाज को शिक्षा, धर्म और सम्मान से दूर रखा गया। ऐसे समय में बौद्ध धर्म ने दलित समाज के लिए आशा की किरण और सम्मानजनक जीवन का रास्ता दिखाया। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा नवबौद्ध चळवळ के माध्यम

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📝 सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति / जनजाति (SC/ST) के लिए आरक्षण – एक विस्तृत मार्गदर्शन

भारत के संविधान निर्माताओं ने समाज के वंचित, शोषित और ऐतिहासिक रूप से पिछड़े वर्गों को समान अवसर और सामाजिक न्याय दिलाने के लिए आरक्षण प्रणाली लागू की। विशेष रूप से अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनैतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण प्रदान किया गया। सरकारी नौकरियों में दिया गया

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