डा.भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा के प्रति विचार
1. शिक्षा शेरनी के दूध के समान है, जिसे पीकर हर व्यक्ति दहाड़ने लगता हैं.
2. शिक्षा एक ऐसा माध्यम हैं जिसे प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचानी चाहिए.
3. शिक्षा सस्ती से सस्ती हो जिससे निर्धन व्यक्ति भी शिक्षा प्राप्त कर सके.
4.शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है.
5. शिक्षा के मार्ग सभी के लिए खुले होने चाहिए.
6.किसी समाज की प्रगति उस समाज के बुद्धिमान, कर्मठ और उत्साही युवाओं पर निर्भर करती है.
7.मैंने जिस प्रकार से शिक्षा प्राप्त की, आप भी प्राप्त कीजिए.
8. केवल परीक्षा पास करने तथा पद प्राप्त करने से शिक्षा का क्या उपयोग?
9. आपको यह याद रखना चाहिए कि कोई समाज जागृत, सुशिक्षित और स्वाभिमानी होगा तभी उसका विकास होगा.
10.अपने गरीब और अज्ञानी भाईयों की सेवा करना प्रत्येक शिक्षित नागरिक का प्रथम कर्तव्य है. बड़े अधिकार के पद पाते ही शिक्षित भाई अपने अशिक्षित भाईयों को भूल जाते हैं. यदि उन्होंने अपने असंख्य भाईयों की ओर ध्यान नहीं दिया तो समाज का पतन निश्चित हैं.
11. अपने बच्चों को विद्यालय जरुर भेजें. उन्हें शिक्षित बनाओ. शिक्षा के बिना समाज को सुधारने का और कोई चारा नहीं.
डॉ0 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के धर्म के प्रति विचार
1. मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वंतत्रता,समानताऔर भाईचारा सिखाता है।
2. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शाश्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
3. जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बनाए रखे, वह धर्म नहीं,गुलामबनाए रखने का षड़यंत्र है।
4. हिंदू धर्ममें, विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं हैं।
5. मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि तथागत बुद्ध विष्णुके अवतार थे। मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।
6. लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा सामाजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगो के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
7. धर्म में मुख्य रूप से केवल सिद्धांतों की बात होनी चाहिए। यहां नियमों की बात नहीं हो सकती।
8. मनुष्य एवं उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये।
अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो किन्ही और मानको का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा।