अयंकाली की जीवनी

🧑‍🌾 परिचय:
अयंकाली (Ayyankali) दक्षिण भारत (केरल) के एक महान सामाजिक सुधारक, दलितों के अधिकारों के पक्षधर, और शिक्षा के प्रचारक थे। उन्होंने जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया। केरल में अयंकाली को दलितों का “महात्मा” भी कहा जाता है।

📅 जन्म और प्रारंभिक जीवन:
  • जन्म: 28 अगस्त 1863
  • स्थान: वेंगनूर, त्रावणकोर (अब केरल)
  • जाति: पुलाया (एक अछूत माने जाने वाला समुदाय)
  • परिवार: वे गरीब किसान परिवार से थे और बचपन से ही सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा।

  • 🔥 प्रमुख आंदोलनों और संघर्ष:
    1. बैलगाड़ी सत्याग्रह (1893)
    • पुलाया जाति के लोगों को सड़कों पर चलने की अनुमति नहीं थी।
    • अयंकाली ने साहसपूर्वक एक बैलगाड़ी में बैठकर सार्वजनिक सड़क पर यात्रा की
    • इससे सवर्ण समाज में खलबली मच गई, लेकिन यह घटना केरल के दलित आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है।

    2. दलित शिक्षा के लिए संघर्ष (1904 से)
    • अयंकाली ने दलित बच्चों के लिए पहला स्कूल स्थापित किया।
    • सवर्णों ने स्कूल जलाकर नष्ट कर दिया, लेकिन अयंकाली पीछे नहीं हटे।
    • उन्होंने सरकार पर दबाव डालकर दलितों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश का अधिकार दिलवाया।
    • उन्होंने कहा था:

      “अगर स्कूल नहीं है, तो हम पेड़ के नीचे पढ़ाएंगे, लेकिन हम शिक्षा से पीछे नहीं हटेंगे।”


    3. साधुजना परिपालना संघम् (Sadhujana Paripalana Sangham – 1907)
    • यह संस्था दलितों की शिक्षा, सामाजिक सुधार और अधिकारों के लिए बनाई गई थी।
    • त्रावणकोर राज्य की यह पहली ऐसी संस्था थी जो संगठित रूप से दलित समाज की आवाज बनी।

    4. कामगार अधिकार आंदोलन
    • खेतों और बागानों में दलित मजदूरों का शोषण, दैनिक वेतन में कटौती, और अमानवीय व्यवहार आम था।
    • अयंकाली ने श्रमिक आंदोलन चलाकर दलित मजदूरों के लिए
      • साप्ताहिक अवकाश,
      • मजदूरी बढ़ोतरी,
      • शोषण से सुरक्षा के अधिकार सुनिश्चित किए।

    🧕 महिलाओं के लिए योगदान:
    • उन्होंने दलित महिलाओं को साड़ी पहनने का अधिकार दिलवाया, जब उन्हें ऊपरी वस्त्र तक पहनने से रोका जाता था।
    • उन्होंने महिला शिक्षा को भी बढ़ावा दिया, जो उस समय क्रांतिकारी कदम था।

    🏛️ अयंकाली और सरकार:
    • 1910 में त्रावणकोर की सरकार ने उन्हें सरकारी प्रतिनिधि सभा में नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने दलितों की आवाज बुलंद की।
    • यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जब एक दलित को पहली बार राज्यसभा जैसी संस्था में स्थान मिला।

    📜 प्रेरणादायक बातें:

    “शिक्षा, संगठन और संघर्ष – यही मुक्ति का रास्ता है।”

    “किसी भी जाति को यदि शिक्षा से वंचित रखा गया, तो उसे सदा गुलाम बनाकर रखा जाएगा।”


🏅 सम्मान और विरासत:
  • अयंकाली के कार्यों के कारण उन्हें “दलितों का अग्रदूत” और “केरल का गांधी” कहा जाता है।
  • केरल सरकार ने उनके सम्मान में कई योजनाएँ और स्मारक बनाए हैं।
  • 2002 में भारत सरकार ने अयंकाली की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया।

⚰️ मृत्यु:
  • 18 जून 1941 को अयंकाली का निधन हुआ।
  • उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और संघर्ष आज भी प्रेरणा बने हुए हैं।

✊ निष्कर्ष:
अयंकाली न केवल एक सामाजिक सुधारक थे, बल्कि वे समानता, शिक्षा और अधिकारों के प्रतीक बन गए। उनका जीवन संदेश देता है कि एक व्यक्ति भी पूरे समाज में परिवर्तन ला सकता है, अगर उसके अंदर अन्याय के खिलाफ लड़ने की इच्छा हो।