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🌺बुद्ध जयन्ती – वैशाख पूर्णिमा🌺

(यह लेख 28 वर्ष पूर्व पूज्य गुरुजी द्वारा म्यंमा(बर्मा) से भारत आने के पूर्व वर्ष 1968 की वैशाख पूर्णिमा पर लिखा गया था जो वहां की ब्रह्म भारती” नामक मासिक पत्रिका में छपा और ‘आल बर्मा हिंदू सेंट्रल बोर्ड रंगून द्वारा पुनः पत्रक के रूप में छपवाकर वितरित किया गया था। आज की वैशाख पूर्णिमा […]

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द बॅटल ऑफ भीम कोरेगाव फिल्म प्रमोशन के लिए २००० पदो की मेगा भर्ती

JOB VACANCY Post – Marketing and media manager Total Posts – 2000 Educational Qualification – Min 10th Pass

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लोक गुरु बुद्ध

“गौतम बुद्ध को गृहस्थ जीवन की कठिनाइयों और पेचीदगियों की जानकारी कहां थी? राजकुमार के जीवनकाल में विवाह के पश्चात पुत्र राहुल के जन्म लेते ही उन्होंने गृह त्याग दिया। तदनंतर गृहत्यागी श्रमण का जीवन जीते रहे। उन्होंने स्वयं गृहस्थ का सफल जीवन नहीं जिया । वे औरों को गृहस्थ धर्म के से सिखा पाते

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बुद्ध ने ज्ञान के सार को कुल 55 बिंदुओं में समेट दिया।

चार – आर्य सत्य पाँच – पंचशील आठ – अष्टांगिक मार्ग और अड़तीस – महामंगलसुत .. बुद्ध के चार आर्य सत्य.. 1. दुनियाँ में दु:ख है। 2. दु:ख का कारण है। 3. दु:ख का निवारण है। और 4. दु:ख के निवारण का उपाय है। .. पंचशील .. 1. झूठ न बोलना 2. अहिंसा 3. चोरी

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धर्म क्या है?

धर्म जीवन जीने की कला है। स्वयं सुख से जीने की तथा औरों को सुख से जीने देने की। सभी सुखपूर्वक जीना चाहते हैं, दुखों से मुक्त रहना चाहते हैं। परंतु जब हम यह नहीं जानते कि वास्तविक सुख क्या है और यह भी नहीं जानते कि उसे कैसे प्राप्त कि या जाए तो झूठे

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छटा संगाएंन रंगून बर्मा

जय भीम नमो बुद्धाय आप सभी धर्म की राह पर चलने वालों को नमन है, आप सभी गुरुजी को जानते है, गुरुजी ने धर्म सिखाया और इससे ये लाभ हुआ, हम राग और द्वेष के बंधनों से मुक्त हो रहे है, क्या आप जानते है, जब छटा संगाएंन रंगून बर्मा में, १९५४-५५, २५०० साल बाद

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“बौध्द व्यक्तित्व का विकास।”

एक बार सर्वोत्तम शल्य-चिकित्सक ‘अनाथपिण्डिक’जेतवनाराम पर आए,श्रावस्ती में महान वैज्ञानिक धम्म-राज भगवान बुध्द विहार कर रहें थे। वहाँ आकर श्रेष्ठ शल्य-चिकित्सक ‘जीवक’ नें भगवन्त को अभिवादन किया और एक ओर आसन ग्रहण कर बैठ गए और सिद्धार्थ गौतम बुध्द से प्रश्न पूछाः “आदमी को धनार्जन क्यों करना चाहिए? और यह बताएँ कि गृहस्थ जीवन में

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मन बंधन का मूल

मन बंधन का मूल है, मन ही मुक्ति उपाय। विकृत मन जकड़ा रहे, निर्विकार खुल जाय ॥ मन के भीतर ही छिपी, स्वर्ग सुखों की खान । मन के भीतर धधकती, ज्वाला नरक समान ॥ कुदरत का कानून है, सब पर लागू होय । मैले मन व्याकुल रहे, निर्मल सुखिया होय ॥ अपने मन का

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क्या होता हैं मृत्यु के समय ?

इसे समझने के पहले थोड़े में यह समझ लें कि मृत्यु है क्या? सत्य सतत् प्रवहमान परिवर्तनशील नदी जैसी भावधारा की एक मोड़ है, उसका एक पलटाव है, एक घुमाव है। लगता यों है कि मृत्यु हुई तो भवधारा ही समाप्त हो गयी। परतु बुद्ध या अहंत हो तो बात अलग है अन्यथा सामान्य व्यक्ति

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धर्म का प्रसार

ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि भगवान के जीवनकाल में सम्राट बिंबिसार, महाराज शुद्धोदन और महाराज प्रसेनजित आदि स्वयं धर्म धारण करके अत्यंत लाभान्वित हुए इसलिए स्वभावतः वे इसमें अनेकों को भागीदार बनाना चाहते थे। उन्होंने अपने-अपने साम्राज्यों में भगवान की शिक्षा के प्रसार में उत्साहपूर्वक सहायता की। परंतु वास्तव में जन-जन में धर्म

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