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🟢 पूरा नाम: अब्दुल कय्यूम अंसारी
🟢 जन्म: 1 जुलाई 1905
🟢 जन्म स्थान: देवघर, बिहार (अब झारखंड में)
🟢 मृत्यु: 18 जनवरी 1973
🟢 पहचान: स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, समाज सुधारक, मुस्लिम लीग विरोधी नेता
🟢 राजनीतिक दल: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
🟢 मुख्य पद: केंद्रीय मंत्री, सांसद, और बिहार में लोकप्रिय नेता
🌟 परिचय:
अब्दुल कय्यूम अंसारी भारत के उन महान नेताओं में से एक थे जिन्होंने मुस्लिम समाज में राष्ट्रवाद, शिक्षा और सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। वे मुस्लिम लीग के कट्टर विरोधी थे और भारत के विभाजन के भी प्रबल आलोचक। उन्होंने हमेशा धर्मनिरपेक्षता, हिंदू-मुस्लिम एकता और भारतीय संविधान का समर्थन किया।
📚 शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:
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उनका जन्म एक सामान्य मुस्लिम परिवार में हुआ।
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बचपन से ही वे तेजस्वी, निर्भीक और सामाजिक रूप से सजग थे।
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उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम की भावना विकसित की।
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वे पत्रकारिता और लेखन से भी जुड़े और अनेक सामाजिक मुद्दों पर लेख लिखते थे।
🗽 स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
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अब्दुल कय्यूम अंसारी ने 1920 और 1930 के दशक में कांग्रेस के साथ जुड़कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
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वे मौलाना आज़ाद और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे।
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उन्होंने मुस्लिम लीग की ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ (Two-Nation Theory) का जोरदार विरोध किया।
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उन्होंने कहा था कि “भारत के मुसलमान इस देश के अभिन्न अंग हैं, उन्हें पाकिस्तान की ज़रूरत नहीं है।”
🕌 मुस्लिम मजलिस मुशावरत और राष्ट्रवाद:
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उन्होंने Momin Conference (मोमिन कॉन्फ्रेंस) का नेतृत्व किया जो एक देशभक्त मुस्लिम संगठन था।
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उन्होंने मुस्लिम समाज को शिक्षा, विज्ञान और आधुनिक विचारधारा अपनाने के लिए प्रेरित किया।
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उनकी सोच थी कि मुसलमानों को धार्मिक कट्टरता से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण में भाग लेना चाहिए।
🏛️ राजनीतिक योगदान:
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वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे।
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आज़ादी के बाद वे सांसद और केंद्रीय मंत्री बने।
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उन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकार, शिक्षा, और आर्थिक उन्नति के लिए कार्य किया।
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उन्होंने हमेशा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और संविधान की रक्षा की।
🕊️ मृत्यु:
अब्दुल कय्यूम अंसारी का निधन 18 जनवरी 1973 को हुआ। लेकिन उनके विचार और योगदान आज भी भारत के लोकतंत्र और एकता के लिए प्रेरणा हैं।
🪔 निष्कर्ष:
अब्दुल कय्यूम अंसारी एक ऐसे मुस्लिम नेता थे जिन्होंने धर्म के नाम पर बंटवारे का विरोध किया, और आज़ादी के बाद मुस्लिम समाज को मुख्यधारा से जोड़ने का महान कार्य किया। वे भारतीय मुसलमानों के सच्चे राष्ट्रवादी प्रतिनिधि माने जाते हैं।