सूरज येंगडे : लेखक, विद्वान और सामाजिक विचारक

सूरज येंगडे भारत के प्रमुख दलित चिंतक, लेखक और सामाजिक न्याय के मुखर स्वर हैं। वे जाति, असमानता, लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे विषयों पर अपने लेखन और वक्तव्यों के लिए जाने जाते हैं। उनका कार्य भारतीय समाज की जाति-आधारित संरचना पर गहन प्रश्न उठाता है।

शैक्षणिक पृष्ठभूमि

सूरज येंगडे ने भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अकादमिक शोध किया। उन्होंने दलित अध्ययन (Dalit Studies), सार्वजनिक नीति, सामाजिक समानता और मानवाधिकार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों से शैक्षणिक रूप से जुड़े रहे हैं।

लेखन और वैचारिक योगदान

सूरज येंगडे की चर्चित पुस्तक “Caste Matters” ने भारतीय समाज में जाति के प्रश्न को वैश्विक मंच पर मजबूती से प्रस्तुत किया। इस पुस्तक में उन्होंने जाति व्यवस्था के ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों का विश्लेषण किया है।

उनके लेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और शोध मंचों पर प्रकाशित होते रहे हैं। उनके लेखन में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचार, संविधानिक मूल्य, बौद्ध दर्शन और विवेकवाद का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।

सामाजिक भूमिका

सूरज येंगडे केवल लेखक ही नहीं, बल्कि एक सक्रिय सामाजिक विचारक भी हैं। वे युवाओं को सोचने, सवाल करने और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित करते हैं। जातिगत भेदभाव, हिंसा और असमानता के खिलाफ वे निरंतर आवाज़ उठाते हैं।

विचारधारा

उनकी विचारधारा के प्रमुख स्तंभ हैं:

  • सामाजिक समानता और मानव गरिमा

  • संविधान और लोकतांत्रिक मूल्य

  • आंबेडकरी आंदोलन

  • बौद्ध धम्म और तर्कशीलता

निष्कर्ष

सूरज येंगडे समकालीन भारत में दलित विमर्श के प्रभावशाली प्रतिनिधि माने जाते हैं। उनका लेखन और चिंतन समाज को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है और समानता आधारित भारत के निर्माण की दिशा दिखाता है।

“सोचना और प्रश्न करना ही सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है” — यह भावना उनके पूरे कार्य में झलकती है।