६ दिसंबर – डॉ. भीमराव आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस
भारतीय इतिहास में ६ दिसंबर केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक वेदना, एक स्मृति और एक युग के समापन का प्रतीक है।
यह वह दिन है जब लाखों लोगों के प्रेरणास्रोत, संविधान निर्माता, समाज सुधारक और मानवता के मसीहा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने इस दुनिया को अलविदा कहा।
उनके अंतिम दिनों की कहानी जितनी दर्दभरी है, उतनी ही प्रेरणादायी भी—क्योंकि अंतिम सांस तक वे काम करते रहे, लड़ते रहे और समाज को दिशा देते रहे।
🌧 शरीर टूट रहा था… लेकिन संकल्प अडिग था
१९५५–५६ का समय बाबासाहेब के लिए कठिनाइयों से भरा था।
मधुमेह, दिल की समस्या, आंखों की रोशनी कम होना, अनिद्रा, अत्यधिक थकान—बीमारियों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया था।
डॉक्टर दिन-प्रतिदिन उन्हें आराम करने की सलाह देते रहे, पर बाबासाहेब के लिए काम ही जीवन था।
वे कहते थे—
“मेरे पास समय कम है और काम बहुत।”
उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काम—“द बुद्धा ऐंड हिज धम्म”—उन्हीं अंतिम दिनों में पूरा हो रहा था।
📘 अंतिम रात: लेखन की ज्योति
४ दिसंबर की रात…
जब सामान्य व्यक्ति गहरी नींद में होता है, तब बाबासाहेब बौद्ध दर्शन पर अंतिम अध्याय लिख रहे थे।
कमजोर हाथ, कांपते हुए भी वे पंक्तियाँ पूरी कर रहे थे।
रात के गहरे सन्नाटे में उन्होंने अपने सहकर्मियों से कहा—
“यह पुस्तक पूरा हो जाए, तो मेरा जीवन सफल होगा।”
और ५ दिसंबर की सुबह तक उन्होंने उस महान ग्रंथ को अंतिम रूप दे दिया।
यही उनका अंतिम लिखा हुआ कार्य था—जो आज भी बौद्धधर्म और सामाजिक न्याय की धरोहर है।
😔 शरीर थक चुका था… मन शांत था
५ दिसंबर के दिन उनकी तबीयत और बिगड़ी।
सावित्रीबाई आंबेडकर बेहद चिंतित थीं।
लेकिन बाबासाहेब हमेशा की तरह शांत रहे।
उन्होंने उनसे कहा—
“चिंता मत करो, मैं बिल्कुल शांत हूँ।”
यह वाक्य सुनकर किसी भी निकट संबंधी का हृदय पिघल सकता है।
🕯 ६ दिसंबर १९५६: वह दर्दभरी सुबह
मुंबई स्थित उनके निवास में ६ दिसंबर की सुबह एक अजीब सी खामोशी थी।
सबेरे ६:३० से ७:०० बजे के बीच यह पता चला कि बाबासाहेब अब इस संसार में नहीं रहे…
देश स्तब्ध था।
लाखों अनुयायियों को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ।
😢 चैत्यभूमि पर आंसुओं का सागर
जब उनका पार्थिव शरीर चैत्यभूमि पहुंचा, तो वहां उपस्थित लोगों की आंखें नम थीं।
तब एक ही वाक्य सुनाई देता था—
“हमारा पिता चला गया… अब हम किसके सहारे?”
लाखों अनुयायियों की भीड़, श्रद्धा और पलकों पर तैरते आंसू—यह दृश्य आज भी इतिहास की सबसे भावनात्मक घड़ियों में एक माना जाता है।
बौद्ध रीति से उनके अंतिम संस्कार सम्पन्न हुए—और उसी क्षण एक युग की समाप्ति मानो घोषित हो गई।
🔵 बाबासाहेब गए… क्या समाप्त हुआ?
नहीं—कुछ भी समाप्त नहीं हुआ।
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समानता का संघर्ष
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शिक्षा का महत्व
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संविधान का गौरव
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विवेक और वैज्ञानिक दृष्टि
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मनुष्य को मनुष्य बनाने की लड़ाई
ये सब आज भी उतने ही जीवंत हैं।
बाबासाहेब कहते थे—
“मैं मरूँगा, पर मेरे विचार नहीं मरेंगे।”
और सच यही है—आज भी उनके विचार दुनिया के करोड़ों लोगों को दिशा देते हैं।
🔵 आज के लिए उनका संदेश
बाबासाहेब के अंतिम दिनों की कहानी हमें सिखाती है—
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समय अमूल्य है
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ज्ञान मनुष्य को स्वतंत्र बनाता है
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समाज परिवर्तन त्याग मांगता है
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बीमारी भी महान संकल्प को रोक नहीं सकती
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विचार हमेशा शरीर से बड़े होते हैं
🕊 उपसंहार: एक महान आत्मा की यात्रा
डॉ. आंबेडकर के अंतिम दिन भले ही कष्टों से भरे थे, लेकिन वे उस योद्धा की तरह थे जिसने अंतिम सांस तक संघर्ष नहीं छोड़ा।
उनकी मृत्यु एक क्षण थी—
लेकिन उनका जीवन?
वह एक ऐसा प्रकाश है जो आज भी समानता, न्याय और मानवता की राह रोशन करता है।
६ दिसंबर सिर्फ याद करने का दिन नहीं—
विचारों को जीवित रखने का दिन है।

