🟢 पूरा नाम: केदारनाथ पांडेय
🟢 प्रसिद्ध नाम: राहुल सांकृत्यायन
🟢 जन्म: 9 अप्रैल 1893 – पंदहा गाँव, ज़िला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
🟢 मृत्यु: 14 अप्रैल 1963 – दरभंगा, बिहार
🟢 उपाधि: “हिंदी यात्रासाहित्य के जनक”, “महापंडित”
🟢 पेशा: लेखक, इतिहासकार, विद्वान, बौद्ध धर्मगुरु, घुमक्कड़
🟢 भाषाएँ: हिंदी, संस्कृत, पालि, तिब्बती, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी, रूसी आदि (30+ भाषाओं का ज्ञान)
🌟 परिचय:
राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य, इतिहास और दर्शन के बहुमुखी विद्वान थे। उन्हें “हिंदी यात्रा साहित्य का पितामह” कहा जाता है। उन्होंने जीवन में अनेक रूप बदले — ब्राह्मण से साधु, साधु से बौद्ध, फिर मार्क्सवादी विचारक और वैज्ञानिक चिंतक बने। वे आजीवन ज्ञान, विवेक और बदलाव के पक्षधर रहे।
👶 प्रारंभिक जीवन:
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जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ, बचपन में ही वैराग्य भाव आया।
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युवावस्था में सन्यास ले लिया और बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए।
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बाद में उन्होंने ‘राहुल’ नाम बुद्ध के पुत्र के नाम पर और ‘सांकृत्यायन’ अपने गोत्र पर रखा।
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उनकी सोच हमेशा परिवर्तनशील, खोजी और तर्कप्रधान रही।
🎓 शिक्षा और ज्ञान:
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उन्होंने स्वयं पढ़ाई की और अनेक भाषाओं में दक्षता हासिल की।
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वे पालि, तिब्बती, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन आदि भाषाएँ जानते थे।
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उन्होंने बौद्ध धर्म, मार्क्सवाद, इतिहास, विज्ञान और साहित्य पर गहन अध्ययन किया।
🌏 घुमक्कड़ी और यात्रा:
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उन्होंने तिब्बत, श्रीलंका, जापान, रूस, नेपाल, लद्दाख, यूरोप आदि देशों की यात्राएँ कीं।
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तिब्बत से उन्होंने बहुमूल्य बौद्ध पांडुलिपियाँ भारत लाईं, जो इतिहास के लिए अमूल्य हैं।
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उन्होंने घुमक्कड़ी को जीवन का दर्शन माना और कहा:
“घुमक्कड़ ही संसार का सच्चा इतिहासकार होता है।”
🖋️ साहित्यिक योगदान:
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उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें साहित्य, धर्म, दर्शन, इतिहास, समाजशास्त्र, यात्रा-वृत्तांत, भाषा-विज्ञान और विज्ञान शामिल हैं।
🔹 प्रमुख रचनाएँ:
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“मध्य एशिया का इतिहास”
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“बौद्ध दर्शन”
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“दर्शन-दिग्दर्शन”
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“भागो नहीं, दुनिया को बदलो”
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“मेरे जीवन की यात्रा” (आत्मकथा)
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“घुमक्कड़ शास्त्र”
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“तिब्बत में सवा साल”
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“दार्शनिक समाजवाद”
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“वोल्गा से गंगा” – (इतिहास आधारित कथाएं)
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“किंचित् स्मरण”, “जयद्रथ वध”, आदि
🔄 विचारधारा का परिवर्तन:
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पहले हिंदू सन्यासी बने → फिर बौद्ध भिक्षु बने → फिर मार्क्सवादी क्रांतिकारी बने।
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उन्होंने धर्म को तर्क की कसौटी पर परखा और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया।
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वे धर्मों की रूढ़ियों, जातिवाद और अंधविश्वास के प्रबल विरोधी थे।
🏆 सम्मान और पुरस्कार:
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उन्हें 1963 में “पद्म भूषण” से सम्मानित किया गया (मरणोपरांत)।
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बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें “महापंडित” की उपाधि दी।
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राहुल सांकृत्यायन शोध संस्थान (दरभंगा), और उनके नाम पर विश्वविद्यालयों में कई विभाग स्थापित हैं।
🕯️ मृत्यु:
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उनका निधन 14 अप्रैल 1963 को हुआ।
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वे जीवन के अंतिम वर्षों में पक्षाघात (पैरालिसिस) से पीड़ित रहे लेकिन लेखन और अध्ययन नहीं छोड़ा।
🪔 निष्कर्ष:
महापंडित राहुल सांकृत्यायन न केवल एक महान लेखक थे बल्कि एक वैचारिक क्रांतिकारी, बौद्धिक योद्धा और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हमें यह सिखाया कि बदलाव जीवन का नियम है, और सोचने वाला मनुष्य ही सच्चा मनुष्य है।
“जड़ता से मुक्त होकर जियो, घुमक्कड़ बनो, जानो और बदलो!”