कांशीराम की जीवनी

नाम: कांशीराम

जन्म: 15 मार्च 1934

जन्मस्थान: ख्वासपुर गांव, रोपड़ जिला, पंजाब

मृत्यु: 9 अक्टूबर 2006, नई दिल्ली

प्रसिद्धि: बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संस्थापक, दलित राजनेता, सामाजिक क्रांतिकारी


प्रारंभिक जीवन:

कांशीराम का जन्म एक दलित (चमार) परिवार में हुआ था। वे बहुत मेधावी छात्र थे। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से साइंस में स्नातक (B.Sc) की डिग्री प्राप्त की। प्रारंभ में उन्होंने सरकारी नौकरी की और पुणे में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में वैज्ञानिक के रूप में काम किया।


प्रेरणा:

1965 में एक दलित कर्मचारी बी.एन. मांडल की मृत्यु ने कांशीराम को झकझोर दिया, जिन्हें छुट्टी न मिलने के कारण जान गंवानी पड़ी थी। इस घटना के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर दलित अधिकारों के लिए संघर्ष करने का संकल्प लिया।


सामाजिक आंदोलन की शुरुआत:

  • 1971: उन्होंने All India SC/ST, OBC and Minorities Employees Association की स्थापना की।

  • 1978: बामसेफ (BAMCEF) की स्थापना – यह एक गैर-राजनीतिक संगठन था, जो शिक्षित दलितों और पिछड़ों को एकजुट करता था।

  • 1981: DS4 (Dalit Shoshit Samaj Sangharsh Samiti) का गठन किया — नारा था: “Thakur, Brahmin, Bania Chhod; Baki Sab Hain DS4”


बहुजन समाज पार्टी (BSP):

  • 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की। इसका उद्देश्य दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को राजनीति में संगठित करना था।

  • उनका प्रसिद्ध नारा था:
    “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी”


कांशीराम और मायावती:

कांशीराम ने मायावती को राजनीति में लाकर उन्हें प्रशिक्षित किया। उन्होंने मायावती को “अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी” के रूप में स्वीकार किया। मायावती बाद में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।


प्रमुख विचार और उद्देश्य:

  • ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध

  • दलितों को शिक्षा, नौकरी और राजनीति में भागीदारी

  • बहुजनों का सामाजिक और राजनीतिक जागरण

  • “संसद हमारी मंजिल नहीं है, यह तो साधन है परिवर्तन का” — उनका स्पष्ट दृष्टिकोण था।


मृत्यु:

कांशीराम का 9 अक्टूबर 2006 को निधन हो गया। उन्होंने अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि उनका दाह-संस्कार बौद्ध रीति से किया जाए और उनके सम्मान में कोई मूर्ति या स्मारक न बने।


योगदान:

  • दलित आंदोलन को नई दिशा दी

  • बहुजनों को राजनीतिक शक्ति दी

  • भारतीय राजनीति में जातिगत असमानता और भेदभाव के खिलाफ दृढ़ आवाज बने


निष्कर्ष:

कांशीराम केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक आंदोलन थे। उन्होंने लाखों दलितों और पिछड़ों को अपने हक की लड़ाई लड़ना सिखाया। वे भारत के सबसे प्रभावशाली सामाजिक परिवर्तनकारियों में से एक माने जाते हैं।