सन १९७१-७२ मेरे जीवन का बहुत संकटपूर्ण समय था। मैंने सफल अभिनेत्री की समृद्ध आजीविका का त्याग किया था, इस दृढ़ निश्चय के साथ कि अब इस जीवन में फिर नहीं लौटना है। जो थोड़ी-बहुत पूंजी मैंने बचा रखी थी वह भी उनको बांट दी जिनके प्रति मेरी जिम्मेदारियां थीं।
मैंने इस आशा से एक नया जीवन आरंभ किया कि मुझे प्यार, शांति, और खुशियां हासिल होंगी। परंतु… घृणा, अपमान और अशांति ही मिली। सब कुछ उलटा हो गया। मैं बिना पतवार की नाव की तरह बहने लगी- निरर्थक, निराधार, निस्सहाय, निर्लक्ष्य। मेरे हृदय के टुकड़े-टुकड़े हो गये, मानस विदीर्ण- विक्षिप्त हो गया, आस्था नष्ट हो गयी, जीवन पर मेरी पकड़ छूट गयी। मैं आत्महत्या करने के समीप थी।
जीवन की इन अंधेरी घड़ियों में कुछ मित्रों ने मुझे सलाह दी कि मैं गुरुदेव श्री गोयन्काजी के विपश्यना शिविर में शामिल हो जाऊं। और कोई आसरा नजर नहीं आया। अतः मैं एक शिविर में शामिल हुई। जैसे-जैसे दिन बीतते गये, मेरी पीड़ाएं कम होने लगी और कुछ-कुछ शांति महसूस होने लगी। मैं एक और शिविर में शामिल हुई। इस बार सारी व्याकुलता दूर हो गयी। मानस शांति से भर गया। आत्महत्या के विचार, जो दिन-रात मेरे सिर पर सवार रहते थे, अब बिल्कुल विलीन हो गये। मैं प्रसन्नता से भर-भर उठी। मैंने एक चमत्कार का अनुभव किया। ऐसा चमत्कार जो अशांति को शांति में बदल दे, भय को साहस में बदल दे, निराशा को मुस्कराती आशा में बदल दे, अंधेरे को जीवंत उजाले में बदल दे।
तदनंतर मैंने अनेक शिविर लिये। मेरे जीवन में प्रकाशभरी ऊषा का नवजागरण हुआ। मैं अमर पक्षी की तरह चिता की राख में से पुनर्जीवित हो उठी। मैं मुंबई लौट आयी। अब मित्रों के चुनाव में मेरे निर्णय अधिक सही हो सके। मैंने फिर फिल्मी दुनिया में प्रवेश किया और सफल हुई। इस बार मैं दुर्जनों द्वारा हताहत नहीं हुई। पहले जो भूलें हुई थीं उनसे भी अब व्याकुल नहीं थी। मैंने अपनी शांति और सुख की दुनिया का स्वयं निर्माण किया। औरों के लिए भी सुख-शांति का कारण बन सकी।
मेरे लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं हुआ। ऐसा चमत्कार जिसने एक मुर्दा व्यक्तित्व को नवजीवन की ऊर्जा से भर दिया। गुरुदेव गोयन्काजी का मंगल हो। वे स्वयं जिस प्रकार बोधि-प्राप्त हैं, वैसे औरों को अपनी-अपनी बोधि जगाने के कार्य में सफल हों। भगवान तथागत का यह पावन मार्ग भारत तथा विश्व के सभी लोगों को प्राप्त हो।
पुस्तक: विपश्यना लोकमत (भाग-1)
विपश्यना विशोधन विन्यास ।।