संत राम बी.ए. (Santram B.A. Prajapati) का जन्म 14 फरवरी 1887 को पंजाब के होशियारपुर जिले के पुरानी बासी (Purani Bassi) गांव में एक संपन्न कुम्हार परिवार में हुआ । उनका असली नाम “संतराम प्रजापति” था और वे भौतिक शिक्षा के साथ-साथ गहन सामाजिक चेतना से भी लैस थे।
—
🕊 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
संत राम का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत था, लेकिन उन्होंने जातीय भेदभाव का अनुभव अम्बाला में अपनी पढ़ाई के दौरान किया था ।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव व आसपास के क्षेत्र में हुई, लेकिन बाद में वे शहरों में सक्रिय हो गए।
✊ सामाजिक आंदोलन और आदर्श
वे आर्य समाज के अनुयायी बने और जात-पात मिटाने हेतु “जात-पात तोड़क मंडल” (Jaatpaat Todak Mandal) की स्थापना 1922 में लाहौर में की ।
मंडल ने बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को 1936 की वार्षिक सभा में मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था, और संत राम उनका चयन प्रेरक माने जाते हैं ।
मंडल के दौरान अम्बेडकर के भाषण को बदलने की इच्छा पर सभा स्थगित हो गई; लेकिन बाद में अम्बेडकर ने वही भाषण ‘जाति का विनाश’ नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित किया।
✍ लेखन और विचारधारा
संत राम बी.ए. ने 100 से अधिक पुस्तिकाएँ लिखीं, जिनमें हिंदू‑मुस्लिम एकता और जाति‑विरोधी विचार प्रमुख थे ।
उनकी प्रमुख पुस्तक “हमारा समाज” 1948 में प्रकाशित हुई, जिसे आज भी याद किया जाता है ।
📚 जीवन‑काल एवं मान्यताएँ
उन्होंने लगभग सौ वर्ष की आयु तक जीवित रहे—1887—1988 तक ।
उनके विचार मूलतः हिंदू धर्म के अंतर्गत होते हुए भी जातिवाद, अंधविश्वास व पूजा‑पद्धति के कट्टर विरोधी थे।
🏅 सम्मान और विरासत
जम्मू‑कश्मीर वाली प्रजापति सभा, जम्मू‑कश्मीर व अन्य राज्यों में उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है ।
आसपास के समाज सुधार मंचों द्वारा उन्हें “जातिवाद‑विरोधी योद्धा” और “क्रांतिकारी विचारक” के रूप में पहचाना जाता है ।
—
संक्षेप में:
संत राम बी.ए. शुद्ध समाज परिवर्तन के अग्रदूत थे – जिन्होंने पंजाबी कुम्हार जाति से निकलकर समाज में व्याप्त जातिवाद और आरक्षण‐संबंधी भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनकी सामाजिक सक्रियता, लेखन और लोगों को जोड़ने की कोशिशें उन्हें एक सम्मानित सामाजिक सुधारक बनाती हैं।
📚 शिक्षा और अनुभव:
प्रारंभिक शिक्षा गांव और आस-पास के क्षेत्रों में हुई।
उच्च शिक्षा के लिए शहरों का रुख किया।
शिक्षा के दौरान ही उन्होंने जातिगत भेदभाव का अनुभव किया, जिसने उनके विचारों को गहराई दी।
—
✊ समाज सुधार कार्य:
🔷 जात-पात तोड़क मंडल की स्थापना:
वर्ष 1922 में लाहौर में “जात-पात तोड़क मंडल” (Jaat Paat Todak Mandal) की स्थापना की।
उद्देश्य: जातिगत भेदभाव, छुआछूत और ऊँच-नीच को समाप्त करना।
🔷 डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर से संबंध:
1936 में मंडल की सभा में डॉ. अम्बेडकर को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था।
अम्बेडकर का भाषण (“जाति का विनाश”) मंडल को बहुत कट्टर लगा, इसलिए सभा रद्द कर दी गई।
इस घटना ने भारत के समाज सुधार आंदोलन में नया मोड़ ला दिया।
—
✍ लेखन कार्य:
उन्होंने लगभग 100 से अधिक पुस्तिकाएं और लेख लिखे।
प्रमुख विषय:
जाति-विरोध
सामाजिक न्याय
हिंदू-मुस्लिम एकता
अंधविश्वास विरोध
धार्मिक कट्टरता के खिलाफ
प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:
“हमारा समाज” (1948) – यह कृति आज भी चर्चित है।
अन्य लेखों में समानता, शिक्षा, आस्था और विज्ञान की बातें शामिल थीं।
—
🧠 विचारधारा और दर्शन:
आर्य समाज के प्रभाव में रहते हुए भी उन्होंने केवल धार्मिक सुधार पर नहीं, सामाजिक परिवर्तन पर ज़ोर दिया।
वे हिंदू धर्म की जाति-प्रथा और पूजा-पद्धतियों की आलोचना करते थे।
संत राम बी.ए. का मानना था कि समाज को न्याय, समानता और शिक्षा से बदला जा सकता है।
—
🏆 योगदान और सम्मान:
उन्होंने भारत में बहुजनों और शोषित वर्गों को सामाजिक चेतना दी।
प्रजापति समाज, आर्य समाज और अनेक सुधारवादी संस्थाओं में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।
जम्मू, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में उनकी पुण्यतिथि और जयंती मनाई जाती है।
—
🕯 मृत्यु:
संत राम बी.ए. ने लगभग 100 वर्षों तक जीवित रहकर समाजसेवा की।
मृत्यु: वर्ष 1988 में हुई।
—
📜 विरासत:
जातिवाद विरोधी योद्धा के रूप में उनकी पहचान आज भी जीवित है।
वे डॉ. अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार, और स्वामी अछूतानंद जैसे महान समाज सुधारकों की पंक्ति में आते हैं।
नई पीढ़ी को उनके विचारों से सीख लेनी चाहिए कि समाज में बदलाव किताबों, विचारों और संगठन से संभव है।
—
🌺 निष्कर्ष:
संत राम बी.ए. प्रजापति एक ऐसे क्रांतिकारी विचारक थे जिन्होंने न केवल जातिवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई, बल्कि उसे जड़ से मिटाने के लिए संगठन, लेखन और आंदोलनों का सहारा लिया। वे भारत में सामाजिक समानता और समरसता के महान प्रतीक हैं।