विपश्यना धम्म

धर्म का प्रसार

ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि भगवान के जीवनकाल में सम्राट बिंबिसार, महाराज शुद्धोदन और महाराज प्रसेनजित आदि स्वयं धर्म धारण करके अत्यंत लाभान्वित हुए इसलिए स्वभावतः वे इसमें अनेकों को भागीदार बनाना चाहते थे। उन्होंने अपने-अपने साम्राज्यों में भगवान की शिक्षा के प्रसार में उत्साहपूर्वक सहायता की। परंतु वास्तव में जन-जन में धर्म …

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विपश्यना केंद्रों का निर्माण और उनका महत्त्व

विपश्यना के प्रचार-प्रसार के लिए धर्म-केंद्रों का विकास एक नये चरण का संकेत है। इसकी सार्थकता को समझना बहुत आवश्यक है। विपश्यना केंद्र, सदस्यों के मौज-मस्ती के लिए बनाये गये क्लब नहीं हैं। न ही वे सांप्रदायिक समारोह मनाने हेतु मंदिर है और न ही सामाजिक गतिविधियों के लिए सार्वजनीन स्थल। ये ऐसे आश्रय-स्थल भी …

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भगवान बुद्ध के ऐतिहासिक स्थल

महापरिनिर्वाण के समय बुद्ध ने आनंद से कहा – “आनंद” धर्म पथ पर दृढ़तापूर्वक चलने वाले लोगों की यात्रा हेतु चार स्थान है जो उन्हें धर्म के लिए और अधिक प्रेरित करेंगे। ये स्थान हैं:- लुम्बिनी – जहां बुद्ध का जन्म हुआ है। बोधगया- जहां बुद्ध को सम्यक संबोधि प्राप्त हुई है। सारनाथ – जहां …

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मृत्यु से सामना

मैंने तुरंत गर्दन को पीछे, दाहिनी ओर पलट कर देखा तो मेरे होशोहवास उड़ गये। मेरी नजर अब ब्राऊन कलर के उस नागराज पर थी और मेरे मेरुदंड से सटे नागराज की दो काली गोलाकार आंखे दाहिनी ओर नीचे चमक रही थीं। देखते ही मैं समझ गया कि मृत्यु सामने नागराज के रूप में खड़ी …

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विपश्यना – कामवासना से मुक्ति का वैग्यानिक रास्ता

कामवासना मानवमन की सबसे बड़ी दुर्बलता है । जिन तीन तृष्णाओं के कारण वह भवनेत्री में बंधा रहता है उसमें कामतृष्णा प्रथम है , प्रमुख है । माता पिता के काम संभोग से मानव की उत्पत्ति होती है । अतः अंतर्मन की गहराइयों तक कामभोग का प्रभाव छाया रहता है । इसके अतिरिक्त अनेक जन्मों …

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