उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति वर्षों से BSP और उसके नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमती रही है। दूसरी ओर भीम आर्मी और चंद्रशेखर आज़ाद ने नए दौर की दलित-युवा राजनीति को जन्म दिया। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है—
क्या बहुजन समाज पार्टी (BSP) और भीम आर्मी/आज़ाद समाज पार्टी कभी साथ आ सकते हैं?
चलिए इसे ऐतिहासिक, सामाजिक, वैचारिक और राजनीतिक पहलुओं के आधार पर समझते हैं।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: दोनों एक ही विचारधारा से जन्मे
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BSP की विचारधारा कांशीराम व डॉ. आंबेडकर से प्रेरित है।
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भीम आर्मी और चंद्रशेखर आज़ाद भी समान रूप से आंबेडकरवादी, सामाजिक न्याय और बहुजन एकता के पथ पर चलते हैं।
मतलब — विचारधारा का आधार लगभग एक जैसा है।
फर्क है राजनीतिक शैली, संगठन और नेतृत्व दृष्टि में।
2. BSP की पारंपरिक राजनीति vs भीम आर्मी का युवा आंदोलन
BSP
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संगठित राजनीतिक ढाँचा
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नेतृत्व का केंद्रीकरण
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शांत, योजनाबद्ध, प्रतीकवादी राजनीति
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अनुभव और सत्ता का मजबूत इतिहास
भीम आर्मी / ASP
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सड़क से उठी राजनीतिक शक्ति
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युवाओं की सीधी भागीदारी
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आंदोलन आधारित मॉडल
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तेज़, भावनात्मक और जनसंपर्क केंद्रित राजनीति
दोनों मॉडल अलग हैं—लेकिन टकराते नहीं, बल्कि एक-दूसरे को पूरक भी बन सकते हैं।
3. अब तक क्यों साथ नहीं आए?
कई कारण हैं:
(1) नेतृत्व का टकराव
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BSP का नेतृत्व अत्यधिक केंद्रीकृत है।
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भीम आर्मी का नेतृत्व युवा, आक्रामक और स्वतंत्र शैली का है।
दोनों मॉडल के बीच तालमेल कठिन रहा है।
(2) राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
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यूपी में दलित वोट सबसे बड़ा आधार है।
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दोनों दल स्वाभाविक रूप से एक ही वोटबैंक को टारगेट करते हैं।
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ऐसे में संयोजन से अधिक प्रतिस्पर्धा पैदा होती है।
(3) विचारधारा समान—लेकिन राजनीतिक रणनीति बहुत अलग
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BSP — “सोशल इंजीनियरिंग” जैसे बड़े गठबंधनों की राजनीति करती है।
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भीम आर्मी — मूल दलित मुद्दों पर सीधी राह और संघर्ष की रणनीति अपनाती है।
4. क्या परिस्थितियाँ ऐसे बन सकती हैं कि दोनों साथ आएँ?
हाँ, तीन स्थितियों में यह संभव हो सकता है:
(1) बड़ा राजनीतिक खतरा या चुनौती
यदि किसी चुनाव में या किसी बड़े राजनीतिक परिदृश्य में दलित हितों पर खतरा महसूस होता है, तो दोनों संगठन एक साथ आ सकते हैं।
(2) बहुजन एकता का बड़ा उद्देश्य
अगर उद्देश्य सिर्फ चुनावी राजनीति न होकर बहुजन जनसंख्या को संगठित करना हो, तो दोनों के एक मंच पर आने की संभावना बढ़ती है।
(3) नई पीढ़ी का दबाव
युवा दलित वोटरों का झुकाव दोनों तरफ है।
यदि युवाओं में “एकता की माँग” बढ़ती है, तो यह राजनीतिक नेतृत्व को गठबंधन की ओर धकेल सकती है।
5. अगर BSP और भीम आर्मी साथ आए—तो राजनीतिक समीकरण कैसा होगा?
यदि कभी दोनों शक्तियाँ साथ आती हैं, तो:
⭐ UP की दलित राजनीति फिर से राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली बन सकती है।
⭐ बहुजन, ओबीसी, मुस्लिम, आदिवासी—एक बड़े सामाजिक आधार की संभावना।
⭐ युवा शक्ति और अनुभव का संगम।
⭐ राजनीतिक समीकरण 1990–2000 जैसी स्थिति में लौट सकते हैं।
यह गठबंधन सिर्फ सीट जोड़ने वाला नहीं—बल्कि एक आंदोलन आधारित राजनीतिक धुरी बन सकता है।
6. लेकिन साथ आने की सबसे बड़ी बाधाएँ
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नेतृत्व मॉडल का फर्क
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व्यक्तिगत राजनीतिक स्पेस
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संगठनात्मक ईगो
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चुनावी गणित
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पुराने बयान और राजनीतिक बयानबाज़ियाँ
राजनीति में ये बाधाएँ अक्सर सामाजिक उद्देश्य से अधिक प्रभावी साबित होती हैं।
7. निष्कर्ष: “संभावना है, लेकिन रास्ता आसान नहीं”
BSP और भीम आर्मी साथ आ सकते हैं—लेकिन यह तभी होगा जब नेतृत्व दोनों पक्षों में “सामाजिक न्याय” को राजनीति से ऊपर रखे।
विचारधारा समान होने के बावजूद, रणनीतियों का फर्क उन्हें अभी तक दूर रखता है।
भविष्य में परिस्थिति, जनदबाव और राजनीतिक समीकरण इस दूरी को कम भी कर सकते हैं।

