संत रविदास की जीवनी

🟢 नाम: संत रविदास / रैदास
🟢 जन्म: 1377 ई. (कुछ मान्यताओं के अनुसार 1450 ई.)
🟢 जन्म स्थान: काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश
🟢 मृत्यु: लगभग 1520 ई.
🟢 धर्म: निर्गुण भक्ति परंपरा
🟢 मुख्य कार्य: समाज सुधार, भक्ति आंदोलन, आध्यात्मिक शिक्षा
🟢 भाषा: सरल हिंदी, अवधी, ब्रज
🟢 मुख्य ग्रंथ: रैदास पदावली, गुरु ग्रंथ साहिब में 40 पद

🌟 परिचय:
संत रविदास भारत के एक महान संत, समाज सुधारक, कवि और भक्त थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने अपने दोहों और पदों के माध्यम से समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत और धार्मिक पाखंड का कड़ा विरोध किया। उन्होंने एक ऐसा समाज बनाने का सपना देखा, जहाँ सब समान हों, सभी को ईश्वर भक्ति का अधिकार मिले

🧵 जन्म और प्रारंभिक जीवन:
संत रविदास का जन्म चर्मकार (मोची) समाज में हुआ था, जो उस समय अछूत माने जाते थे। उनके माता-पिता का नाम रघु और कर्मा देवी था। वे बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्होंने बचपन में ही मूर्तिपूजा, जाति-पांति जैसे भेदभाव को नकारा और ईश्वर को प्रेम और भक्ति से पाने का मार्ग अपनाया।

🔱 भक्ति और गुरु:
रविदास जी निर्गुण भक्ति मार्ग के अनुयायी थे। उन्होंने संत कबीर से भी प्रभावित होकर आत्मज्ञान प्राप्त किया। वे कहते थे कि ईश्वर जाति नहीं देखता, केवल भक्ति देखता है।
उनकी प्रसिद्ध उक्ति है:
“मन चंगा तो कठौती में गंगा।”
(यदि मन पवित्र है तो स्नान करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है।)

🧭 सामाजिक सुधारक:
  • उन्होंने समाज में समानता, भाईचारा और प्रेम का प्रचार किया।
  • उन्होंने ऊँच-नीच, छुआछूत, और वर्ण-व्यवस्था का विरोध किया।
  • उन्होंने स्त्रियों को भी भक्ति और समाज में समान अधिकार देने की बात कही।
  • मीराबाई जैसी राजकुमारी भी उनकी शिष्या बनीं।

📚 काव्य और रचनाएँ:
  • संत रविदास ने अपने विचारों को दोहों और पदों के माध्यम से व्यक्त किया।
  • उनकी भाषा साधारण जनमानस की थी – अवधी, ब्रज, खड़ी बोली का मिश्रण।
  • उनके करीब 40 पद सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल हैं।

प्रसिद्ध दोहे / पद:
👉 “ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिलै सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न॥”
👉 “जाति-पांति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।”
👉 “अब मोहि राम नाम की लागी भूख।
भोजन के हीत नाहिं पियासा, कह रैदास छोड़ि दीन्हीं सूख॥”

⚰️ मृत्यु:
संत रविदास की मृत्यु वाराणसी के निकट सीर गोवर्धनपुर में हुई। वहाँ आज भी एक विशाल मंदिर है, जिसे “श्री गुरु रविदास जन्मस्थली मंदिर” कहा जाता है। यह स्थल सभी जातियों, धर्मों और समुदायों के लोगों के लिए समान रूप से पवित्र माना जाता है।

🏵️ वार्तालाप और प्रभाव:
  • गुरु नानक, कबीर, मीरा, दादू दयाल जैसे संतों पर रविदास जी का प्रभाव रहा।
  • उन्होंने धर्म नहीं, कर्म और प्रेम को ईश्वर से मिलने का मार्ग बताया।
  • आज भी उनकी शिक्षाएँ दलित चेतना, सामाजिक समता और आध्यात्मिक साधना का आधार हैं।

🪔 निष्कर्ष:
संत रविदास का जीवन और विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उन्होंने न केवल धर्म बल्कि समाज में भी बदलाव की अलख जगाई। वे भक्ति के मार्ग पर चलकर सामाजिक न्याय और आत्मा की मुक्ति के प्रतीक बन गए।