संत शीवाजी जोगेंद्र (संत जगनाडे) की जीवनी

🟢 पूरा नाम: संत जगनाडे महाराज

🟢 जन्म: 1615 ई. (लगभग)

🟢 जन्म स्थान: चाकुर गांव, जिला उस्मानाबाद (अब महाराष्ट्र)

🟢 जाति: तांबट (लोहार जाति)

🟢 धर्म: हिन्दू (वारकरी संप्रदाय)

🟢 प्रसिद्धि: संत तुकाराम के परम शिष्य, संत, समाजसुधारक, कीर्तनकार


🔸 परिचय:

संत जगनाडे महाराज महाराष्ट्र के एक महान संत और संत तुकाराम महाराज के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। वे एक समाजसुधारक, आध्यात्मिक कीर्तनकार और दलित समाज की आत्म-गरिमा के प्रतीक थे। उन्होंने वारकरी संप्रदाय में योगदान देकर भक्ति, समता और सेवा का संदेश दिया।


🔸 प्रारंभिक जीवन:

  • संत जगनाडे का जन्म तांबट (लोहार) जाति में हुआ, जो उस समय समाज में निम्न मानी जाती थी।

  • बाल्यावस्था से ही वे धर्म और भक्ति के प्रति आकर्षित थे।

  • सामाजिक भेदभाव के बावजूद उन्होंने संत तुकाराम की वाणी और विचारों से प्रेरणा लेकर समाज सेवा का संकल्प लिया।


🔸 संत तुकाराम से संबंध:

  • संत जगनाडे, संत तुकाराम महाराज के सच्चे अनुयायी और जीवनी लेखक थे।

  • उन्होंने संत तुकाराम की अभंग रचनाओं को लिपिबद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • ऐसा माना जाता है कि यदि जगनाडे महाराज ने तुकाराम महाराज की रचनाओं को संकलित न किया होता, तो उनका साहित्य आज लुप्त हो गया होता।


🔸 सामाजिक कार्य और सुधार:

  • उन्होंने जात-पात और अस्पृश्यता का विरोध किया।

  • सभी को एक समान मानने का संदेश दिया — चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या वर्ग के हों।

  • उन्होंने वारकरी परंपरा में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित की।


🔸 प्रमुख योगदान:

  • तुकाराम महाराज की जीवनी और उनके विचारों का प्रचार

  • वारकरी परंपरा में समता और न्याय का भाव लाना

  • दलित और पिछड़े वर्ग को आध्यात्मिक आत्मसम्मान दिलाना

  • भक्ति आंदोलन में सक्रिय भागीदारी


🔸 मृत्यु:

  • संत जगनाडे महाराज का निधन 1688 के आसपास हुआ माना जाता है।

  • वे आज भी वारकरी संप्रदाय और दलित समाज में श्रद्धा से पूजे जाते हैं।


🔸 सम्मान और विरासत:

  • महाराष्ट्र सरकार ने उनके सम्मान में “संत जगनाडे महास्वाभिमान योजना” जैसी योजनाएँ शुरू कीं।

  • स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी मूर्तियाँ और नाम से संस्थान स्थापित किए गए हैं।

  • उनका जीवन और कार्य सामाजिक समता, भक्ति और संघर्ष का प्रतीक है।


🟡 निष्कर्ष:

संत जगनाडे महाराज केवल एक संत नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांतिकारी, लेखक और प्रेरक शक्ति थे। उन्होंने संत तुकाराम की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाया और अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि जाति नहीं, भक्ति और सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।