सावित्रीबाई फुले की जीवनी

🟢 पूरा नाम: सावित्रीबाई जोतिराव फुले

🟢 जन्म: 3 जनवरी 1831

🟢 जन्म स्थान: नायगांव, सतारा जिला, महाराष्ट्र

🟢 मृत्यु: 10 मार्च 1897, पुणे

🟢 पति: महात्मा ज्योतिराव फुले

🟢 पेशा: शिक्षिका, समाज सुधारिका, कवयित्री, महिलाओं की अधिकार कार्यकर्ता


🔸 परिचय:

सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका और महिला सशक्तिकरण की अगुवा थीं। उन्होंने स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, छूआछूत, बाल विवाह और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और जीवनभर दबे-कुचले वर्गों के लिए कार्य किया।


🔸 प्रारंभिक जीवन:

  • सावित्रीबाई का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।

  • मात्र 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह 13 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हुआ।

  • शादी के बाद ही ज्योतिबा फुले ने उन्हें पढ़ाया और शिक्षित किया।

  • बाद में सावित्रीबाई ने टीचर ट्रेनिंग भी प्राप्त की और एक शिक्षिका बनीं।


🔸 महिला शिक्षा की शुरुआत:

  • 1848 में पुणे के भिडे वाडा में भारत का पहला महिला विद्यालय खोला गया।

  • सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं।

  • उन्हें समाज से विरोध, अपमान और पत्थर तक झेलने पड़े, लेकिन वे डटी रहीं।

  • उन्होंने कहा:

    “एक शिक्षित स्त्री पूरे समाज को शिक्षित कर सकती है।”


🔸 समाज सुधार कार्य:

🔹 1. विधवा पुनर्विवाह और बाल हत्या रोकथाम:

  • समाज में विधवाओं को तिरस्कृत किया जाता था।

  • सावित्रीबाई ने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और
    “बाल हत्या प्रतिबंधक गृह” की स्थापना की, जहाँ विधवाएँ अपने नवजात शिशु को सुरक्षित रख सकती थीं।

🔹 2. दलितों के अधिकारों की रक्षा:

  • उन्होंने अछूतों और शूद्रों के लिए भी स्कूल खोले।

  • सावित्रीबाई ने जातिवाद और धार्मिक भेदभाव का खुला विरोध किया।

🔹 3. सत्यशोधक समाज में योगदान:

  • 1873 में ज्योतिबा फुले द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज की सक्रिय सदस्य रहीं।

  • उनके पति की मृत्यु के बाद सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज का नेतृत्व किया।


🔸 मृत्यु:

1897 में प्लेग महामारी के समय सावित्रीबाई फुले ने संक्रमित लोगों की सेवा की।
एक बच्चे को प्लेग से बचाते समय वह स्वयं भी संक्रमित हो गईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।
वे सेवा करते हुए शहीद हुईं।


🔸 कविता और लेखन:

  • सावित्रीबाई फुले एक प्रेरणादायक कवयित्री भी थीं।

  • उनकी प्रमुख काव्य संग्रह हैं:

    • “काव्यफुले” (1854)

    • “बावन्न खण” (1892)

  • उन्होंने स्त्रियों को जागरूक करने के लिए कविताओं और भाषणों का प्रयोग किया।


🔸 विरासत और सम्मान:

  • भारत सरकार ने सावित्रीबाई फुले पर डाक टिकट जारी किया।

  • 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले जयंती के रूप में मनाया जाता है।

  • कई विश्वविद्यालय, विद्यालय और योजनाएँ उनके नाम पर हैं।

  • वे महिला शिक्षा की जननी और भारत की पहली नारी क्रांतिकारी मानी जाती हैं।


🔸 प्रेरणादायक विचार:

  • “जागो और शिक्षित बनो।”

  • “स्त्री शिक्षित होगी तभी समाज बदलेगा।”

  • “अगर कोई अन्याय कर रहा है तो उसे सहना भी पाप है।”


🔸 निष्कर्ष:

सावित्रीबाई फुले का जीवन त्याग, संघर्ष और प्रेरणा की मिसाल है। उन्होंने न केवल महिलाओं को पढ़ाया, बल्कि पूरे देश को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। आज भी उनका योगदान भारतीय समाज सुधार आंदोलन का आधार स्तंभ है।