धर्म सदा रक्षा करे

जब कभी श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक अस्वस्थ होता और दुर्बलता के कारण विहार जाकर भगवान के दर्शन करने में असमर्थ हो जाता, तब अपने किसी संदेशवाहक को भगवान के पास भेजता। उससे कहता कि तुम जाकर मेरी ओर से भगवान के चरणों में सिर से वंदना करना और उन्हें मेरी बीमारी के
बारे में बताना।
इसके बाद स्थविर सारिपुत्त तथा आयुष्मान आनन्द से मिलने के लिए कहता। भगवान की भांति इन स्थविरों की वंदना करके अपनी बीमारी का हाल बताने के लिए कहता। फिर महास्थविर से यह निवेदन करने के लिए कहता – “भंते! यदि आप बीमार पड़े गृहपति के घर चलने की कृपा करते तो बड़ा ही अच्छा होता।”
ऐसे अवसरों पर महास्थविर सारिपुत्त स्वयं या आयुष्मान आनन्द को अनुगामी श्रमण के रूप में लेकर आते और श्रेष्ठी को धर्मोपदेश करते जिसके अभ्यास से श्रेष्ठी स्वस्थ हो जाता। एक बार संदेशवाहक के ऐसे ही निवेदन पर आयुष्मान सारिपुत्त तथा आनन्द अनाथपिण्डिक गृहपति के घर पहुँचे, और बिछे आसन पर बैठ गये। तब आयुष्मान सारिपुत्त ने अनाथपिण्डिक गृहपति से उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछा ।
गृहपति ने उत्तर दिया – “भंते! मेरी तबियत अच्छी नहीं है।”
“गृहपति! अज्ञानी लोग बुद्ध के प्रति जिस अश्रद्धा से युक्त होकर मरने के बाद नरकगामी होते हैं वैसी अश्रद्धा आप में नहीं है।
बुद्ध के प्रति आपकी श्रद्धा दृढ़ है –
“ऐसे ही तो हैं वे भगवान! अर्हत, सम्यक संबुद्ध, विद्या तथा सदाचरण से संपन्न, उत्तम गति प्राप्त, समस्त लोकों के ज्ञाता, सर्वश्रेष्ठ, (पथ-भ्रष्ट घोड़ों की तरह) भटके लोगों को सही मार्ग पर ले आने वाले सारथी, देवताओं और मनुष्यों के शास्ता (आचार्य), बुद्ध, भगवान ।” गृहपति! बुद्ध के प्रति उस दृढ़ श्रद्धा को अपने में देखते हुए वेदना को शांत करें।
गृहपति! धर्म के प्रति आपकी श्रद्धा दृढ़ है –
“भगवान द्वारा भली प्रकार आख्यात किया गया यह धर्म सांदृष्टिक है, काल्पनिक नहीं, प्रत्यक्ष है, तत्काल फलदायक है, आओ और देखो (कहलाने योग्य है), निर्वाण तक ले जाने योग्य है, प्रत्येक समझदार व्यक्ति के साक्षात करने योग्य है।”
गृहपति! धर्म के प्रति उस दृढ़ श्रद्धा को अपने में देखते हुए वेदना को शांत करें। गृहपति! संघ के प्रति आपकी श्रद्धा दृढ़ है –
“सुमार्ग पर चलने वाला है भगवान का श्रावक संघ, ऋजु मार्ग पर चलने वाला है भगवान का श्रावक संघ, न्याय (सत्य) मार्ग पर चलने वाला है भगवान का श्रावक संघ, उचित मार्ग पर चलने वाला है भगवान का श्रावक संघ, यह जो (मार्ग-फल प्राप्त आर्य) व्यक्तियों के चार जोड़े हैं याने आठ पुरुष-पुद्गल हैं – यही भगवान का श्रावक संघ है, (यही) आवाहन करने योग्य है, पाहुना बनाने (आतिथ्य) योग्य है, दक्षिणा देने योग्य है, अंजलि-बद्ध (प्रणाम) किये जाने योग्य है। लोगों का यही श्रेष्ठतम पुण्य क्षेत्र है। गृहपति! संघ के प्रति उस दृढ़ श्रद्धा को अपने में देखते हुए वेदना को शांत करें।
“गृहपति! अज्ञानी लोग दुःशील से युक्त होकर मरने के बाद नरक में उत्पन्न हो दुर्गति को प्राप्त होते हैं । गृहपति! आप श्रेष्ठ और सुंदर शीलों से युक्त हैं। उन श्रेष्ठ और सुंदर शीलों को अपने में देखते हुए, वेदना को देखते हुए वेदना को शांत करें।
गृहपति! आप सम्यक-दृष्टिक हैं, उस सम्यक-दृष्टि को अपने में देखते वेदना को शांत करें। इसी प्रकार, गृहपति! सम्यक संकल्प, सम्यक-वाचा, सम्यक-कर्मान्त, सम्यक-आजीव, सम्यक-व्यायाम, सम्यक-समाधि, सम्यक-ज्ञान (आर्य-अष्टांगिक) मार्ग का आचरण करने वाले हैं। इन गुणों को अपने में देखते हुए वेदना को शांत करें। गृहपति! अज्ञानी लोग मिथ्या-विमुक्ति से युक्त होते हैं। गृहपति! आपको सम्यक विमुक्ति है। उस सम्यक-विमुक्ति को अपने में देखते हुए वेदना को शांत करें।
“तब, अनाथपिण्डिक गृहपति की वेदनाएं शांत हो गयीं।
“तदनंतर, अनाथपिण्डिक गृहपति ने आयुष्मान सारिपुत्त और आयुष्मान आनन्द को स्वयं अपने हाथ से भोजन परोसा । इसके उपरांत आयुष्मान सारिपुत्त, अनाथपिण्डिक गृहपति के भोजन-दान का अनुमोदन कर आसन से उठ कर चले आये।
“तब आयुष्मान आनन्द भगवान के पास आये। एक ओर बैठे हुए आयुष्मान आनन्द से भगवान ने कहा- “आनन्द! तुम इस दुपहरिये में कहां से आ रहे हो?”
“भंते! आयुष्मान सारिपुत्त ने अनाथपिण्डिक गृहपति को ऐसे-ऐसे उपदेश दिये हैं।”
“आनन्द! सारिपुत्त पंडित है, महाप्राज्ञ है जो कि सोतापत्ति के चार अंगों को दस प्रकार से विभक्त कर देता है।”
– संयुत्तनिकाय ३.५.१०२२, पठमअनाथपिण्डिकसुत्त
पुस्तक: भगवान बुद्ध के अग्रउपासक “अनाथपिण्डिक” (दायकों में “अग्र”) ।
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
भवतु सब्ब मंङ्गलं !!
🙏🙏🙏